पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६११

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सरस्वती। 6. [ भाग १५. श्यकई कि हिन्दू इस झगड़े को अहें पीर अपने को चलने लगेंगे। ऐसा होने से हमारा यद र बहुत पविध समझ कर इसपे से घेर न मास में। विस्तीर्ण देश चियमिथो जायगा। .:'. बहुत से हिम्दु का भर्म तो अम केवल चाफे में भारत की जातियों में भेद विपाने पासे मोर रह गया है। हिन्द स्वच्छता रक्ने, पर विपेकपूर्वक। बात है। सर खान स्ट्रासी ने एक 'अन्ध लिमा इसका यह मसलब नहीं कि जो हिन्दू निरामिप- नाम है-भारत की उन्नति पार उसका पासमा भाजी है ये ग्रामिपमाडी हो जायें। मतलब फेयल उसमें जगह जगह पर उन्होंने यह दिवे. इतमा ही है कि उनको भन्य माति के लोगों के साथ का यन किया है कि हम सब लोग मित्र मित्र घठने में कोई प्रापत्ति न दोनी चाहिए। इममें एकसा मही । “भारत.की जातियाँ-नामा मुसम्मामी के लिए भी पद प्रायश्यफ है कि प्रत्याय में प्रापमे पारसियों को विदेशी पतलाया। निम पाती से हिन्दुप फेदय में चोट लगती है "देशीय राम्य" शीर्षफ अभ्याय में मापने म म की जाय । गो-यथका ही बड़ाझगड़ा है। किसने ही भारत के राजायको-जैसे हैदराबाद के निशान विचारशील मुसलमान पार कायुल के प्रमीर जैसे ग्यालियर के से पिया, इन्दौर के शालार मादिक मेसा तक कह रहे है कि इस्लाम धर्म में गोषम की विदेशी बताया है। रमका कहना उचित है । मामा पापश्यफसा महौं । अमीर साहप अप भारत में पाये साम्राज्य के व्यापतन के समय अब भारत । थे तब ईद के दिन थे । तथापि ऐसे समय मी मापने सनिक मप्तामों पार माग़ल साम्राज्य के प्रतिनिधि यदी कहा कि गोयध म किया जाय । मुसलमान माई प्रादि में परस्पर घार युर प्रारम्म हा तभी। यह पूछ सकते है कि गोमध करने पार पकरा या सव राज्य एमे थे। इसमें कोई सम्बंध महीं । परम भंसा मारने में क्या अन्तर है?इसका रचर यही अब तो इस बात को संकड़ों साल हो गये । पार निया मा सफताकि मनुप्य के सभी काम हार्दिक भी ये विदेशी हीदरहा, यदि उनकाई न यामी के कारण महाँ दुमा फरतं । निप्पारण भी घर या अन्य देश होता, यदो .ये जा सपने प्रया मनुप्य पढ़ी बड़ी यातें किया करते ६। बड़ी बड़ी पर्दा बामे के लिए ये उस्मुक दति, ता पास इसर सदा, रागदप प्रादि निष्कारण भी हाजाते हैं। थी। तो घे प्रयय विदेशी कमाते । परन्तु : पर ये सपा पाने मनुप्य के जीवन पर मयदर पे यही बस गये हैं। उन्दै पीर फदी आमाही प्रभाय शलमी है। इस तरह की बातों को भी है।तप ये विदेशी कम! निष्कारण धार्मिक विचार समझा कर, एकता यदान पारसी भी परदेशी फ्यों? १३० परेका के सदेश से, इमारी प्रत्येक जासि को यह निश्चय उन्हें यहाँ पाये हो गये। प्रा भी पे परदेशी दोन कर देना पाहिए. कि. उमके किसी काम में किसी !ता फिर संसार की कोई भी जाति काम दृसरी गाति, काजी न दुरी। स्वदेशी नहाँ । गलन, मागम, 'इटी भाषिक हिन्द मुसलमानों के भगः यदि म होगे तो पर्तमान मियामियों के प्रपिपरा पूर्वज भार मा परिणम पत पुग हो सकता है। यही से पाय । उगहें भी प्राय १०० या १०० दोभारम की प्रमान जातियो है। इसकी पंपादेवी मेधिक मही उपपर्तमान भयन गहमान पार घाटी पाटी जानियां भी ऐमा दी करेंगी पार पग पे अपने देश का परदेश समझ करीता भंव पर.भेद पता ही जायगा। मिपप, अम, • MInvirenn पारमी, ईसाई स्पादि सभी अपने अपने राम्ने Amlathtuanton.