पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६२४

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गुल देमा। इसके भागे। पिड़ा विरोप, परम्पदी फिर भमिमेप। बिन्तु वहाँ र ममानियोग- हामा कादिरा-वियोग । मैपिटीशरण गुप्त ७ समिक्षा मी व बसमस पड़ो, हांसी थी मोतियों की-सी पड़ी। "बन पड़ी भार" मने मा, "पापई, पस में मेरा मन र हार कम हम क्या मुझे देते हो। में वही, किन्तु प का काम हो।" हस्प समय मे बड़ा दिये, और बोले-"एक बावियन प्रिपे !" सिमिस्सी सासा गई पिप की प्रिया, पुतीमय अपाङ्ग भर रसने दिया । किन्तु यते में उसे प्रिय में किया, भाप ही फिर माप्प अपना दिया। पीत बाता एक पुग पप-सा पहा, मुन पड़ा पर, साहस-सा पाँ। दार पर होमे पगी बिस्वामी, । गुजरिक्-सी हामी मगम-सपी स्व, मागम, बन्दिमान या पड़ में, बन्द और प्रनाय नूतनगद रहे। मुरब, बीया, बेतु भादिक बार, विशवामिक राबर पय ठे। बम्पती कि, परन-मण्यम हवा, पाबा-मी विकली सर्मिया । पमा सौमित्र ने-"वो अब बल, मार स्वना निम्न मी पदमा म हूँ। बेसने इसमदि-सी, पब से- . पा मेहदेव मी पाताभ से। दिन निकल भाषा, विदा को अब मुझे, फिर मि प्रकारे मुझे।" सम्मिंशा करने पनी ऊष, पर यकी- और मिय प्रहर पर हकी। मसिसी प्रमा मूसाई, मिव कि प्रमुरे प्रेम में ममा दुई। पमता या भूमितव को भी वितु-सा भाषा, विध प्रेम के गहासमर कर बाय । पन-सा सिर पर रनमा प्रायपति का हाप, रो रही थी महति अपमे माप पूर्व समाप गुल देना। HITस प्रान्त में एकषियित्र चिकित्सा-प्रणाली खलित । उसका पर्णम में सर-, २ स्वती केपाठको कोसुनाता । पाशा EMA , पाठक उस पर विचार करेंगे। वास से व्यवसायी पीर मज़दूर चार पैसे कमाने के लिए प्रासाम तथा पूर्वो असल जाते हैं। यहाँ ये प्रायः ऐसे स्थानों में राते हैं जहाँ का बल-वायु उनके स्वास्थ्य नुकूळ महों । इस दशा में शीघ्र ही थे ज्वर से पीड़ित हो कर रोगी हो जाते हैं। यदि पर शीघ्रम गया तो अन्त में समकी फिलही परमाती है। पिलाही हर उम्र के भादमियों की पड़ती है। पर, पर मनुप्प पापा उससे क्वे रहते हैं। कभी कभी साधारण ज्वर, कुपप्प भादि के कारण, विपम-ज्वर हो जाता है और रोगी के पेट में पिलही बढ़ जाती है। व्यर की कमजोरी में विकमी थी, मी पादि सा लेने से भी पेट में पिलही हो जाती है। पिळही पर जामे पर उसे दूर करने के प्रमेक उपाय किये जाते है। उन उपायों में एक ग्पाय गुल का देना भी है। गुळ क्या चीज़ यह मीचे के पर्यम से विदित होगा- गुरु देमा सभी मनुप्प महाँ बानते । किसी किसी गांप में ही ये लोग मिलते हैं। गुल शनिधार या मादिस्यधार को पूर्या के समय दिया जाता है। पहले रागी को पश्चिम की पौर सिरहाना करके समीन पर कम्पळ या घटाई पिछा कर लिटा ,