पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६८२

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संख्या ६] . विविध विषय। । सायरसमे से जीयित रहते है और अपना काम फेरठ साहब को उनकी गधेपणा का मार्ग ज्यों का स्यों करते हैं। इसी कारण स्वीकार करमा दिखला दिया। पपता है कि देव से प्रग होने पर भी ये प्रवपथ जो हो, पर्तमान चिकित्सा-विधान के इस मपीम सीधन का सब कार्य यथावर चला सकते हैं। प्रायिप्कार से संसार के विज्ञान-घेता पर कुछ ___ मास तक जितने पड़े बड़े प्राविष्कार दूर है उत्साहित हुए हैं। ये माशा करने लगे है कि किसी उनका इतिहास देखने से पता लगवा है कि म किसी दिम मृतदेह में चेतना शक्ति का भी अवश्य प्राषिष्कार करमे पाटी ने अपने प्राधिकारी का सम्धार किया जा सकेगा। चेतना-शकि क्या घस्तु मामास पहले किसी दूसरे कार्य में पाया था। इसके है, यह अब भी जायिज्ञानिग को प्रात नहीं। पाद कठिन साघमा शाप कार्य-कारण-भाष का इस दशा में मृत शरीर में उसका सम्चार सम्मय निश्चय करके, तब कहीं पे उमकी प्रतिष्ठा कर है कि नहीं, यह बात विचारवान् पाठक स्वयं ही सके । केरल साइप ने भी अपने इस प्रायिफार सोच सकते है। का पाभास पफ दूसरे ही कार्य में पाया था। थोड़े दिन हुए, रात को स क्सने के समय फ्रांस के विविध विषय। एक प्रसिख धनिक की मृत्यु हई। उसकी यदुत बड़ी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी उसका एक मानाळिग १-मेघदूत की दुर्गति । लाफा था । कानूम के अनुसार वालिग होने का TRIYA अम माम की एक किवाय किसी ने मारे खो समय निश्चित है छडका उसे उसी रात के पास “च गरर रिप्पू' मे दी है। पा पारद व पूर्ण करने वाला था । प्रतपय उसके . पिसाप देती में पी और पापमी कुटुम्म के लोग पड़े चिन्तित हुए। ये सोचने लगे L AJ मीमच के बाद मांगीलाल गुप्त "वि कि मायालिग़ अयस्था में पिता के मर जाने से लाके भिर वारा प्रकाशित हुई । को सम्पत्ति का मधिकारी वमने में बहुत कुछ वर्षे पाइटिश पेट पर मिपा-इसे "माझी उठाना पड़ेगा । मृत व्यकि कोही घटे तक सीमित बनाव पण्डित प्रभुवयाब सा मिप्र, पाशिक, बसमधी" रखने के लिए फ्रांस के मुख्य मुख्य चिकित्सक पुलाये सिकित्सकमा मे पार किया है। पर कालिदास के मेषदूत के प्रमुभाव गये । केरस साहब भी उन्हों में थे । थे उसके शरीर के माम से प्रकाशित हुई। के भीतर एक अटी सी पिचकारी से तरह सरह की म्के मासिक और ससारिक पत्रों में कमी कमी ऐसे मी देश देने में भाते मो सहत काप्पो और वनिक पापधियाँ पहुँचाने लगे । इसका फस यह प्रग्यों के प्रापार पर खिसे होते । परम्त इन देने के मा कि स्पन्दन-हीन -यच फिर स्पन्दन से पापा यही सूचित होता है कि सत्ता के भूप करने लगा। शरीर की गर्मों पड़ी पीर फेफस मप रेशम ये नहीं मिले गपे। या तो किसी से इन प्रम्पों मी पौषधियों की उत्तेखना से अपमा श्वासोण्यास- की बातें सुन मुमार बेसमें मे इन्हें विसा है पा पौर कार्य करने लगा। इस प्रकार मृत शरीर में मापामों में किये गये इसके अनुवाद देवकर दिसा । पर मयीन सीयन का सम्बार होगया । केरल साहब ने इस तरातक इस बात को पुप करना शायर अपनी इस प्रकार मृत व्यक्ति को १२ बजने के पाप १५ पोम्पता में या बगाना सममते । इसीसे पह मेद ही मिन्ट तक जीयित सखा । पर मृत शरीर में ये रोखते । सव सम्प हुमा, कासिदासरे साल के कुछ चेतना-शक्ति म उत्पन्न कर सके । इसी घटमा ने पंगवा-पुस्तक- "माहासिकी"से अनुवादित ।