पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/८८

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त्या १] पौराणिक रामयंशों का समयनिरूपण । Iोकि दक्षिण में उसके दूसरे भाइयों तथा पुर यतित्य स्थापित किया पार पानययंशी राजे इमी राज्य हामे के कारण यहो उसके राज्य का विस्तार अयसर में गङ्गा के दक्षिण तट में पढ़ने पढ़ते मगध एकुलम हो सकता था । अन्य विशामों की पोर का पार विहार की पोर बढ़ गये । थोड़े दिनो सकन दिमालय तथा प्रम्याम्य पहाटे मे घिरा था । इस राओं के दो दिमाग दोनों जगह राज्य करते रहें। रण उघर भी उसके पढ़ने का कोई उपाय न था। शिधि का पुष केकय उत्तर में गमा दुमा पार उसका प्रकार यद्यपि इस पंश के लोगों को राज्य बढ़ाने एक पंशज गपप नाम का पूर्व में राज्य करने मगा। अयसर म मिला, तपापि इनका यम्य उत्तर की केकय का पंश यपपि मागे कुछ समय तक मला, र होने से पीर अन्य राजी की उस पर दृपिम तथापि उसका विशेष पर्णन की नहीं पाया जाता। हमे से पद महाभारत के पास तक प्रविच्छिन्न चला पुराणकारों ने मानघ यंश में रूपाय की दी सन्तति या। इस कारण इन लोगों के नाम ही मात्र पार्य का वर्णन किया है। स्पद्रय के अनन्तर हेम, मुत- हते हैं । फोचत् ही कहीं थापा-बहुत विशिष्ट घर्णम पस् पार पलि नामक तीन रामे हुए । रामा यति के फाई सन्तान म थी। इस कारण उसने एक प्रम्य । उत्तर में राजा अनु के राज्य का विस्तार धादा मपि से पुत्रोत्पत्ति कर्गा पार नियोग-विधि का tथा । अनु के प्रमन्तर कालानल, सुजय, पहले पहल प्रारम्भ किया । इसके पहले पुराया में दरम्मय, जनमेजय प्रार महाशाल नाम के पांच कहीं नियोगविधि का वर्णन महीं पाया जाता । इमी से उसके पंश में दुप । महाशाल के महाममस् नियोगविधि से इसके प्रत मामक पुष हुमा । प्रह मक पुष हुमापारय राज्य मीत लेमे के अनन्तर देश इसी रामा के माम मे यिरत्यात ६। यद वादयो पीर ईहयों में जब झगड़े हो रहे घेतम इसने गमावाप्यन्ति मरत का समकालीन था। घर के पनी दृएि दसिय की पोर दाई पोर.पीरे पोरे मनम्तर दधिवादन, प्रनपान, वियरय पार. निम- हो के को जीतना प्रारम्भ किया। महाममस के रप मामक पार ग पार हुए नियम्य याद पिचात् उशीनर. तितिक्ष पार शियि में भी इस रामपाद नामक रामा मुमा । यद दशरप का सम- समय का कार्य जारी रमसा । राजा शिपि यदा कालीन था । रामपाद के प्रनम्तर चतुरत, प्रयुलाम हरामी था। यह अनेक देश को जीत कर चार्ता पार पम्प मामक रामे इस यंश में प्रमि हुए। मा। यद्यपि पद पड़ा प्रभुताशाली था तयापि राजा चम्म में अम्मा माम की पुरी यसाई पार उसे इसपर माम उसके पराप्रम से प्रसिद्ध नहीं दी उसने अपनी राजपानी यमाया । बनेपाम सपमी सस्यता तथा शरणागतवत्सलता से प्रसिर साहब के मस से याद नगरी भागलपुर. से३५ मील है। रामा शियि की फथा किसी से छिपी मही। पूर्य को थी । कहते है कि पान भी यही पमानगर. अनेक पापियो मे उसके पाग्याम पर अनेक कवितायें पार पम्मापुर, माम के दो गाय ६ । गजा पमपी मृत्यु के पश्चात् फाई पिशेर प्रमिदगमा म पंा । रामा शियि का समय भारत में पड़ी मशान्ति में म दुप्रा । इसी समय मगध देश में पुर के पार का समय था। पाप राज्य उस समय विपिदा पंचम मा पर्म पार नया मगध-या पम्नित्य में पुपा था। पादय पार हय काशी के गजामों से प्रापा । स यंा पराममी गो के मम्मग पर्य पापस में ला रहे थे।इन सब पाती कंपारण मानप-शायरा का तंज फोन पर गया पिंग पिप्स माका पा पर शिपि में देश में अपना पक्ष अपना ऐटा सा गाय शिली मार पटाने ।