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सचाई की जड़

मनुष्य कितनी ही भूले करता है, पर मनुष्यो की पारस्परिक भावना— स्नेह, सहानुभूति के प्रभाव, का विचार किये बिना उन्हे एक प्रकार की मशीन मानकर उनके व्यवहार के नियम गढ़ने से बढ़कर कोई दूसरी भूल नही दिखाई देती। ऐसी भूल हमारे लिए लज्जाजनक कही जा सकती है। जैसे दूसरी भूलों में ऊपर-ऊपर से देखने से कुछ सचाई का आभास दिखाई देता है वैसे हो लौकिक नियमो के विषय में भी दिखाई देता है। लौकिक नियम बनाने वाले कहते है कि पारस्परिक स्नेह सहानुभूति तो एक आकस्मिक वस्तु हैं, और इस प्रकार की भावना मनुष्य की साधारण प्रकृति की गति मे बाधा पहुॅचाने वाली मानी जानी