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सर्वोदिय


है वह तो उसे पा जाता है और जो उसे बचाता है बह उसे खो देता है।

सेना और सेनानायक का उदारण लीजिए। जो सेनानायक अर्थशास्त्र के नियमों का प्रयोग कर अपनी सेना के सिपाहियों से काम लेना चाहेगा वह निर्दृष्ट काम उनसे न ले सकेगा। इसके कितने ही दृष्टान्त मिलते है कि जिस सेना का सरदार अपने सिपाहियो से घनिष्ठता रखता है,उनके प्रति स्नेह का व्यवहार करता है,उनकी भलाई से प्रसन्न होता है,उनके सुख-ढुख में शरीक होता है,उनकी रक्षा करता है—सारांश यह है कि जो उनके साथ सहानुभति रखता है वह उनसे चाहे जैसा कठिन काम ले सकता है। ऐतिहासिक उदाहरणो में हम देखते हैं कि जहाँ सिपाही अपने सेनानायक से मुहब्बत नही रखते थे वहाँ युद्ध मे क्वचित््‌ही विजय मिली है। इस तरह सेनापति और सैनिकों के बीच स्नेह-सहानुभति का बल ही