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मचाई की हट


वास्तविक दल है। बात लुटरों के दालों में भी पाई जाती। ठाकुरों का दल भी अपने सरदार के प्रति पूर्ण स्नेह रखता हैं; लेकिन मिल आदि कारखानों 'मालिकों पर मजदूरों में हमें इस तरह की धनिष्ठना दिखलाई नहीं देती उसका एक करण तो यह है कि उस तरह कारखाने में मजदूरों की तनखावा का आधार लेन-लेन के, माग ओर प्राप्ति के नियमों पर रहता हैं। इसलिए मालिक और मजदूरों के सीन प्रीति के बदले 'प्रपश्नीति विध्यवान रा्नी है ओर की जगह उनके सम्बन्ध मे विसोन, प्रतिदावनितआ दिखाई देती है। ऐसी व्यवस्था में हमें दो प्रभो पर विचार फरता है।

पहला प्रश्न यह है कि मांग का '्र प्राप्त का विचार किए बिना नौकरी कीvतनस्च्बाद किस है मेक स्थिर फी गठ

दूसरा यह हैकि जिस सरद्र पूरने परिवारोंमें मालिश नौकर का या सेना में सेनापति "सौर