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सर्वोदय


भापाटे के साथ धन बटोर सके। चाल भी ऐसी ही पड़ गई है कि ग्राहक कस-से-कम दाम दे ओर व्यापारी जहॉाँतक हो सके अधिक मांगे और ले। लोगो ने खुद दी व्यापार मे ऐसी आदत डाली और अच उसे उसकी बेइमानी के कारण नीची निगाह से देखते है। इस प्रथा को बदलने की जरूरत है। यह कोई नियम नहीं होगया है कि व्यापारी को अपना स्वार्थ ही साधना--धव ही वटोरना चाहिए। इस तरह के व्यापार को हस व्यापार न कहकर चोरी कहेंगे। जिस तरह सिपाही राज्य के लिए जान देता है उसी तरह व्यापारी को जनता के सुख के लिए धन गवा देना चाहिए, प्राण भी दे देने चाहिएँ। सभी राज्यों मे--

  सिपाही का पेशा जनता की रक्षा करना है,
  धर्मोपदेशक का, उसको शिक्षा देना है,
  चिकित्सक का, उसे स्वस्थ रखना है;
  वकील का,उससे न्याय का प्रचार करना है,