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सर्वोदय


हम वकील, डाक्टर और पटजी के मंतव्य में भी मानते है, इसलिए उन्हें आदर की दृष्टि से देखते हैं। बकील को अपने प्राण निकलने सके भी न्याय ही करना चाहिए। वैग को अनेफ सफद सहकर भी अपने रोगी का उपचार करना उचित हैं। और पादरी धर्मापदेसक को चाहिए कि उसपर कुछ भी क्यो न घिनो पर अपने समुदाय वालो को ज्ञान देता और सच्चा रास्ता बताता रहे।

    यदि उपयक्त पेशों मे ऐसा हो सकता है तो व्यापार मे क्‍यों नहीं हो सकता? आखिर व्यापार के साथ प्यनीति का नित्य सम्बन्ध मान लेने का क्या कारण हैं? विचार फरने से दिखाई देता है कि व्यापारी सम के लिए स्वार्थी ही मान लिया गया है। ब्यापारी का कास भी जनता के लिए जरूरी हैं। पर हमने मान लिया है कि इसका उद्देश्य केबल अपना घर भरना है। कानन भी इसी दृष्टि से बनाये जाते है कि व्यापारी