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सर्वोदय

लापर्वाह होता है तो बेचारे नवयुवक बिना माँ बाप के होजाते हैं। इसलिए पद-पद पर व्यापारी या मालिक को अपने-आपसे यही प्रश्न करते रहना चाहिए कि "में जिस तरह अपने लड़कों को रखता हूँ वैसा ही वर्ताव नौकरों के साथ भी करता हूँ या नहीं?"

जहाज़ के कप्तान के नीचे जो खलासी होते है उनमें कभी उसका लड़का भी हो सकता है। सब खलासियों को लड़के के समान मानना कप्तान का कर्त्तव्य है। उसी तरह व्यापारी के यहाँ अनेक नौकरों में यदि उसका लड़का भी हो तो काम-काज के बारे मे वह जैसा व्यवहार अपने लडके साथ करता है वैसा ही दूसरे नौकरों के साथ भी उसे करना होगा। इसीको सच्चा अर्थशास्त्र कहना चाहिए। और जिस तरह जहाज़ के खतरे में पड़ जाने पर कप्तान का कर्त्तव्य होता है कि वह स्वयं सबके बाद जहाज़ से उतरे, उसी तरह अकाल इत्यादि संकटों में