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उपसंहार

है: परन्तु स्वराज्य हमें नीति मार्ग से प्राप्त करना है। वह नाम का नहीं, वास्तविक स्वराज्य होना चाहिए। ऐसा स्वराज्य नाशकारी उपायों में नहीं मिल सकता। उद्योग की आवश्यकता है; पर उद्योग सच्चे रास्ते से होना चाहिए। भारतभूमि एक दिन स्वर्णभूमि कहलाती थी, इसलिए कि भारतवासी स्वर्णरूप थे। भूमि तो वही है; पर आदमी बदल गये हैं, इसलिए वह भूमि उजाड़-सी हो गई है। इसे पुनः सुवर्ण बनाने के लिए हमें सद्गुणों द्वारा स्वर्ण-रूप बनाना है। हमें स्वर्ण बनानेवाला पारसमणि दो अक्षरों में अन्तर्निहित है और वह है 'सत्य'। इसलिए यदि प्रत्येक भारतवासी 'सत्य' का ही आग्रह करेगा तो भारत को घर बैठे स्वराज्य मिल जायेगा।