पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१०४

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"दादाभाऊ कह रहे थे कि उसे सलाम करना होगा । उसके पास कोई नहींजा सकता। वहां कटहरा लगा है। दूर से सलाम करना होगा। वापू, पास जाने से क्या वह काट खाता है ?" "अब तो हम आगरे आ ही गए हैं । चलकर देखेंगे।" "तो मेरी तलवार मुझे देना बापू, वह काटने लगेगा तो मैं उसके मुंह में तलवार घुसेड़ दूंगा।" "ऐसा ही करना, बेटे। पर क्या कारण है कि आगरे से कोई उमराव नहीं आया ?" "उमराव यहां क्यों आएगा ?" "हमारे सत्कार के लिए। हम बिना उसके आगरे में थोड़े ही जा सकते हैं !" "क्यों नहीं जा सकते हैं। अपने दक्षिण में तो हम चाहे जहां जा सकते थे।" "लेकिन बेटे, आगरे में तभी जाएँगे, जव कोई उमराव आएगा। पर अब तो सूर्यास्त हो रहा है । अभी तक कोई नहीं आया।" इसी समय उन्होंने देखा कि दो सवार घोड़ा दौड़ाते हुए आ रहे हैं । आगन्तुक की इत्तला-सेवक ने दी कि महाराज जयसिंह के पुत्र कुंवर रामसिंह मुजरा करने पधारे हैं। "कुंवर रामसिंह ?" शिवाजी की त्यौरियों में बल पड़ गए। कुंवर कौन ?" "वे ढाई हजारी मनसबदार हैं।" "और उनके साथ दूसरा सवार कौन है ?" "एक राजपूत सैनिक है।" "केवल सैनिक ?" शिवाजी ने हौंठ चबाए। किन्तु फिर आहिस्ता से कहा- "आने दो।" १०२