पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३६ आगरा उन दिनों का आगरा आजकल' के आगरे से भिन्न था। बहुत- सी बातों में वह दिल्ली से बढ़ा-चढ़ा था। दिल्ली आगरा की अपेक्षा नौ-आबाद थी। जिस काल की वात इस उपन्यास में है, उस समय दिल्ली को वसे अभी ४० ही साल हुए थे। आगरा की गर्मी से घबरा कर शाहजहाँ ने दिल्ली की नई वस्ती वसाई थी जो शाहेजहानाबाद कहाती थी । पुरानी दिल्ली के इस समय भी मीलों तक खण्डहर फैले हुए थे और सव सरकारी इमारतें, तथा लाल किला तक उन पुराने खण्डहरों से ईंट-पत्थर आदि लेकर बसाई गई थी। दिल्ली का निर्माण अब तक भी चल ही रहा था। वह शहर यमुना किनारे एक चौरस मैदान में अर्द्ध चन्द्राकार वसा था जिसके पूर्वी दिशा में यमुना थी जिस पर नावों का पुल था और तीनों ओर पक्की शहरपनाह थी जिसमें सौ- सौ कदमों पर बुर्ज बने हुए थे। बीच-बीच में कच्चे पुरते भी थे। यह शहर मुश्किल से तब दो-ढाई मील के घेरे में आवाद था जिसमें बीच- बीच में वागात और मैदान भी । परन्तु आगरा दिल्ली की अपेक्षा बड़ा शहर था । अव तक भी वह बादशाहों का मुख्य निवास स्थान रहा था। राजाओं और अमीरों की यहाँ बड़ी-बड़ी हवेलियाँ थीं। बीच-बीच में सुन्दर पक्की सराएँ और धर्मशालाएँ थीं जो सार्वजनिक उपयोग में आती थीं। इसके अतिरिक्त ताजमहल और अकबर के सिकन्दरे के कारण इसकी विशेषता बहुत बढ़ गई थी। परन्तु आगरे के चारों ओर शहरपनाह नहीं थी। न इसमें दिल्ली की भाँति पक्की साफ-सुथरी सड़कें ही थीं। कुल चार-पाँच बाजार थे, जिनमें व्यापारी लोगों ही की वस्ती थी। बाकी सब छोटी-छोटी गलियाँ थीं। जब बादशाह १०६