भीड़-भाड़ में अपने मालिक के लिए राह बना रहे थे । कुछ अमीर और राजे हाथियों पर आए थे, कुछ पालकियों पर जिन्हें छः कहार कन्धों पर उठा रहे थे। ये अमीर निरन्तर पान खा रहे थे। उनके बगल में एक खिदमतगार चाँदी का उगालदान लिए हाजिर था जिसमें वे कभी-कभी पीक गिरा देते थे। दूसरी ओर दो नौकर मक्खियों और धूल से मालिक को बचाने के लिए उनके सिरों पर मोर्छल फेर रहे थे। तीन-चार प्यादे आगे-आगे लोगों को हटाते चल रहे थे। शोर बहुत था। सिपाही लोग जोर-जोर से चिल्ला कर लोगों को हटाते थे । शिवाजी के लिए यह सब कुछ निराला दृश्य था। इतनी भीड़- भाड़ और अव्यवस्था में उनका दम घुट रहा था। वे भी अपने दस सरदारों और पुत्र शम्भाजी सहित किले में आगे बढ़ते जाते थे। कुंवर रामसिंह उनके घोड़े के साथ था और सब प्रश्नों का उत्तर देता जा रहा था। अब वे किले के भीतरी फाटक तक जा पहुँचे। सामने एक लम्बी सड़क चली गई थी। यहाँ उमरा लोग सजे-धजे कक्षों में पहरा- चौकी दे रहे थे। बड़े-बड़े दीवानखाने और उनके आगे के बागों की शोभा देखकर वे हैरान हो रहे थे। इन खेमों में वेशुमार रुपया सिर्फ सजावट के काम में ही खर्च किया गया था। उनमें चिकनदोज और जरदोजी का काम हो रहा था। सुनार, दर्जी, चित्रकार, नक्काश, रङ्गसाज, बढ़ई, खरादी, दर्जी, मोची, कमखाव और मखमल बुननेवाले जुलाहे, छोटी-छोटी कोठरियों में बैठे अपने-अपने काम कर रहे थे । यहां से आगे खासोाम की इमारत थी जो महराबों पर खड़ी थी। महराबें ऐसी बनी थीं कि एक महराब से दूसरी में जाया जा सकता था। इसके सामने वाले दरवाजे के ऊपर बालाखाना बना हुआ था जिसमें शहनाई, नफीरियां और नगाड़े बज रहे थे । दस-बारह नफीरियां और इतने ही नक्कारे एक साथ बज रहे थे। सबसे बड़ी १०८
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