नफीरी ६ फुट लम्बी थी। नक्कारे लोहे या पीतल के थे जिसकी गोलाई ६ से ८ फुट तक थी। उनका शोर इतना था कि कान बहरे हो रहे थे । दूर से अवश्य यह सुरीले लगते थे। ४० बादशाह के रूबरू आमखास में दरवार लगा था। आज सालगिरह का दरवार था। अतः बड़ी तड़क-भड़क से सजाया गया था। दीवाने खास के बीचोंबीच शहनशीन पर वादशाह का प्रसिद्ध तख्तताऊस रखा था जिसपर वादशाह बैठा था। उसके दाएं-बाएँ शहजादे खड़े थे। ख्वाजा सरा मोर्छल हिला रहे थे । वहुत से गुलाम शाही हुक्म बजा लाने को हाथ बांधे पीछे कतार में खड़े थे। तख्त के नीचे चांदी का जंगला लगा हुआ था जिसमें उमरा, राजे और राजाओं के प्रतिनिधि हाथ वांधे खड़े थे। सब की निगाहें नीची थीं, तख्त से कुछ दूर हट कर मनसबदार या छोटे उमरा खड़े थे। वीच का थोड़ा-सा स्थान खाली था। लोगों के सलाम व मुजरे चल रहे थे। बीच-बीच में नजरें और भेंट में आई विविध बहुमूल्य वस्तुएँ वादशाह की नजर के सामने लाई जा रही थीं। बादशाह के मुंह से कोई शब्द निकलता था तो दरवार के बड़े-बड़े उमरा 'करामात' 'करामात' का मर्मर शब्द करते थे और 'सुवहानअल्लाह, क्या इर्शाद हुआ है कहते थे। बादशाह ने भी खूब तड़क-भड़क की पोशाक पहनी थी। उसके शरीर और पगड़ी पर बहुमूल्य रत्न चमक रहे थे। उसके कण्ठ में जो मोतियों की माला लटक रही थी, वह नाभि तक पहुँच रही थी। उमरा लोगों की पोशाकें भी बहुमूल्य थीं। आम खास के बाहर एक बड़ा खेमा लगा था, जो सहन में आधी दूर तक फैला हुआ था। यह चारों ओर से चांदी के पत्तरों से मड़े १०६
पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१११
दिखावट