पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/११५

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मरवा डाला जाय या कैद कर लिया जाय । इसी से उसने दरबार में उनकी अवज्ञा की थी। पर उसे यह गुमान भी न था कि वह भरे दर- बार में इस प्रकार से दरबारी अदब को भङ्ग करेंगे । अतः अब उसने अपने इस इरादे को निश्चय में बदल दिया कि खतरनाक दुश्मन को अब जिंदा आगरे से बाहर न जाने दिया जाय.। ४२ शेर पिंजरे में सालगिरह के दरबार के बाद सबको यह आशा थी कि शिवाजी शान्त होकर दरबार में आएंगे और बेअदबी के लिए क्षमा माँग कर और खिलअत पहनकर देश को लौट जाने के लिए रुखसत को अर्ज करेंगे। लेकिन शिवाजी ने दरबार में आने से कतई इन्कार कर दिया । बहुत कहने-सुनने पर अपने पुत्र शम्भाजी को रामसिंह के साथ भेजा। शाही दरवार का अदब भङ्ग होजाने और शिवाजी की इस दबङ्ग कार्यवाही ने आगरे में तहलका मचा दिया। महाराज बलवन्तसिंह जय- सिंह के प्रतिद्वन्द्वी थे। उन्होंने और दूसरे उमरावों ने शिवाजी के विरुद्ध बादशाह के कान भरे । सब बातों पर विचार करके बादशाह ने हुक्म दिया-"खत लिखकर महाराज जयसिंह से पूछा जाए कि उन्होंने क्या कौल- करार करके और क्या वायदे करके और सौगन्ध खाकर आगरे भेजा था। जब तक वहां से जवाब आए, शिवाजी को आगरे के किलेदार राव अन्दाजखां को सौंप दिया जाय ।" लेकिन रामसिंह ने इसका विरोध किया और उसने वजीर आमिनखां से कहा-"मेरे पिता के वचन पर' शिवाजी आगरे आए हैं, मैं उनकी जान का जामिन हूँ। पहले बादशाह, हमको मार डालें और उसके बाद जो जी में आवे, करें।" यह सुनकर बादशाह ने हुक्म दिया कि शिवाजी को रामसिंह के सुपुर्द कर दिया जाय और उससे मुचलका लिखा लिया जाय कि यदि