शिवाजी भाग जाय या आत्मघात करले तो उसके लिए रामसिंह जवाब- दार होगा। परन्तु इतना होने पर भी बादशाह ने शहर कोतवाल सिद्दी फौलादखां को हुक्म दिया कि शिवाजी के डेरे के चारों तरफ तोपें रखवा कर शाही फौजें बैठा दीजाएं और डेरे के अन्दर आमेरी सेना के तीन-चार अफसरों और कछवाही फौजों का पहरा लगा दिया जाय । इस प्रकार शिवाजी को आगरे में कैद कर लिया गया । ४३ ताजमहल का कैदी आज तो आगरे का ताज विश्व का दर्शनीय स्थान बना हुआ है। पर उन दिनों सिवाय शाही परिवार और बड़े-बड़े उमरावों के कोई ताज में नहीं जा सकता था। न आज जैसी चौड़ी सड़कें और प्रशस्त लॉन उन दिनों ताजमहल के आसपास थे। आगरे से पूर्वी दिशा में एक लम्बा पथरीला मार्ग चला गया था जो क्रमशः ऊँचा होता जाता था। उसके एक ओर एक बड़े बाग की चहारदीवारी थी, जो ऊँची और लम्बी दूर तक चली गई थी। उसके दूसरी ओर नए बने हुए मकानों की एक पंक्ति चली गई थी जिनमें दुहरी महराब बनी हुई थी। इस दीवार के आधी दूर तक पहुँचने पर दाहिनी ओर एक बड़ा फाटक था जो बहुत शानदार था । वह वास्तव में एक बड़ी सराय का फाटक था जो हाल ही में वनकर तैयार हुई थी। इसके सामने ही उस दीवार में एक दूसरा फाटक था जिसे पार करके एक छोटा-सा बाग और एक आलीशान इमा- रत नजर आती थी। इमारत बहुत सुन्दर थी। इसी में शिवाजी को डेरा दिया गया था। शिवाजी ने वजीरेआजम जफरखां और दूसरे बड़े-बड़े उमरावों को घूस देकर अपने छुटकारे की सिफारिशें बादशाह से कराई। पर ११४
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