पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/११८

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क कुछ दिनों से एक ठिगने कद का मजबूत-सा आदमी गुमाश्ता होकर डचों की कोठी में आया है। शहर के एक बड़े सरदार की सिफा- रिश पर वह वहाल हुआ है। यह अपेक्षाकृत सस्ते भाव में उन्हें नील सप्लाई करता है। आदमी मुस्तैद और सच्चा है तथा आगरे का निवासी नहीं है। उसने इस बार आगरे के देहातों से नील एकत्र करने का ठेका लिया है और उसे तथा उसके आदमियों को डचों ने शाही परवाने अपनी जमानत पर ला दिए हैं तथा वह व्यक्ति अपने आदमियों के साथ यहीं रहता है। उसकी कार्यकुशलता और मुस्तैदी से डच बहुत खुश हैं। उसके आदमी कभी-कभी डचों से आईने, लेस और दूसरी चीजें खरीदकर भी मुफस्सिल में बेचते हैं। गुमाश्ते का नाम मानिक है । कोठी के मैनेजर क्लोरिन साहब हैं। दोनों ही आदमी टूटी-फूटी उर्दू बोल सकते हैं। मानिक ने कहा-"आपने सुना हुजूर, एक मराठा सरदार बादशाह को सलाम करने आया है। यह वही सरदार है जिसने जहां- मामू का अंगूठा काट डाला था और सूरत में लूट की थी।" "ओह ! हां, हम उसे जानता है, वो डाकू सरदार है।" "लेकिन साहेब, रुपया उसके पास खूब है। वह खुले हाथों खर्च करता है । आगरे वालों की तरह कंजूस नहीं है।" "तो बाबा, तुम क्या चाहते हो ?" "साहेब, हमारे पास जो बड़े-बड़े आइनों और वानात का नया चालान आया है, यह हम उसे अच्छे मुनाफे में बेच सकते हैं। आप एक परवाना शाही मंगा दें तो मैं उस बेवकूफ सरदार से अच्छा नफा कमा सकता हूँ।" क्लोरिन ने हंसते हुए कहा-"अच्छा, अच्छा, परवाना हम देगा। तुम अक्लमन्द आदमी है । हमारे पास बढ़िया किसिम का मख- मल भी है। ज्यादा मुनाफा कमानोगे तो बोनस :मिलेगा.।" पनाह के ,