पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/११७

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बादशाह को बेगम शाइस्ताखां निरन्तर शिवाजी द्वारा सूरत के बन्दरगाह की लूट और अपने पति को घायल करने की याद से उत्तेजित करती रहती थी। उसने कोई सिफारिश नहीं सुनी। शिवाजी ने वादशाह के सामने भी बहुत से कौल-करार लिख भेजे, पर बादशाह ने उन पर भी कान नहीं दिया । अन्ततः शिवाजी अब अपने जीवन से निराश हो गए। दक्षिण में जब आगरे में होने वाली इन दुर्घटनाओं का विवरण जयसिंह ने सुना तो वह बड़ी दुविधा में पड़ गया और उसने अपने पुत्र रामसिंह को बारंबार आदेश दिया कि हम राजपूत हैं और हमारे किए कौल- करार और शिवाजी को दिए आश्वासन झूठे न होने पाएं तथा शिवाजी. की जान पर भी कोई खतरा न आने पाए, इसका पूरा ख्याल रखना। ४४ डच गुमाश्ता उन दिनों आगरे में ड्चों की एक कोठी थी जिसमें उस समय चार या पांच डच अधिकारी रहते थे। ये लोग वानात, छोटे-छोटे शीशे, सादे और सुनहरी तथा रुपहली लेस, और छोटे-मोटे लोहे के सामान बेचते थे तथा नील खरीद कर अपने देश को भेजा करते थे। उन दिनों आगरे के आसपास नील की बहुत खेती होती थी और डचों के बहुत से एजेन्ट देहातों में घूम-फिर कर चील ख़रीदा करते थे। डचों की एक कोठी बयाना में भी थी जो यहां से सात-आठ मील के अन्तर पर थी। वहां देहातों से खरीदा हुआ नील जमा होता था। जलालपुर और लखनऊ से भी वे लोग नील खरीदते थे। वहां भी उन्होंने एक-एक डिपो बना रखा था जहां भारतीय गुमाश्ते-कारिन्दे रहते थे। उन दिनों आर्मीनियन लोग भी आगरे के आसपास यही धन्धा करते थे और दोनों दलों में खूब व्यापारिक संघर्ष चलता था।