कत यह थी कि मुगल और शिवाजी के बीच की यह सन्धि एक अल्प- कालीन युद्ध-विराम मात्र थी क्योंकि औरंगजेब को इस समय सदैव अपने बेटों से विद्रोह का खतरा बना रहता था और न जाने क्यों उसके शक्की मिज़ाज में यह विश्वास घरं करता जाता था कि कहीं मुअज्जम- शिवाजी से मिलकर विद्रोह का झंडा खड़ा न कर दे। अन्त में उसने शिवाजी को पकड़ने या उसके लड़के को कैद करके धरोहर के रूप में अपने अधिकार में रखने का एक गुप्त षड़यन्त्र करना प्रारम्भ किया । इसी समय एक ऐसी घटना घटी जो चिनगारी का काम कर गई। शाही दरबार में जाने के लिए शिवाजी को जो एक लाख रुपये दिये गये थे, उनकी वसूली के सिलसिले में बरार में दी गई शिवाजी की नई जागीर का एक अंश कुर्क कर लिया गया । वस, शिवाजी ने एक बारगी ही मुगल साम्राज्य पर धावे बोल दिए, उनके दल के दल दूर-दूर तक धावा करके मुगल' प्रदेश को लूटने लगे। पुरन्दर की सन्धि के समय औरङ्गजेब को जो किले सौंपे गए थे, वे एक-एक करके वापस ले लिए। साथ ही सन् १६६० के अन्त तक शिवाजी ने अहमदनगर, जुन्नर और परेण्डा के आसपास के ५१ गाँवों को भी लूट लिया । इस समय शाहजादा मुअज्जम और दिलेरखाँ का पारस्परिक विरोध बहुत बढ़ गया था । स्थिति यहाँ तक बिगड़ गई कि दिलेरखाँ को विश्वास हो गया कि यदि वह मुअज्जम की सेवा में उपस्थित हुआ तो या तो वह कैद कर लिया जायगा या मार दिया जायगा। उसकी अवज्ञाओं से क्रुद्ध होकर और जसवन्तसिंह के बढ़ावे में आकर मुअज्जम ने औरङ्गजेब से शिकायत की कि दिलेरखाँ विद्रोही हो गया है। उधर दिलेरखाँ ने औरङ्गजेब को सूचना दी कि शाहजादा मुअज्जम और जसवन्तसिंह शिवाजी से मिलकर शाही तख्त के लिए खटपट कर रहे हैं। इस समय मुअज्जम अपनी मनमानी कर रहा था और शाही १३३
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