परन्तु यह सबकुछ अपवाद के रूप में ही हुआ और इस प्रकार की सारी कार्यवाही मुस्लिम दृष्टि से एक निन्दनीय आचरण था और यह समझा जाता था कि शासक ने अपने प्रधान शासक की अवहेलना की है। सच्चे मुस्लिम शासक की सारी सत्ता मुस्लिम सेना पर आधारित थी। मुस्लिम राज्य के आधारभूत साधनों की दृष्टि से गैर- मुसलमानों की वृद्धि और उन्नति और निरन्तर अस्तित्व बना रहना सर्वथा असंगत था । ऐसे राजनैतिक समाज में एक अनिश्चित और अस्थायी भावना उत्पन्न होती गई तथा शासक और शासितों के बीच परम्परागत विरोधी भावना निरन्तर बनी रही जिसका परिणाम यह हुआ कि विधर्मी मुस्लिम राज्य का अन्त में विनाश हुआ और यह कार्य औरंगजेब के शासनकाल में हुआ। ५१ औरंगजेब को कट्टर राजनीति औरंगजेब एक धूर्त और कुटिल राजनीतिज्ञ था । अपने राज्य के पहले ही वर्ष में उसने नए मन्दिरों के निर्माण का निषेध कर दिया। बाद में तो उसने अनेक मन्दिरों को भ्रष्ट किया, नष्ट किया और उनके स्थानों पर मस्जिदें वनवाई । उसने कटक से लेकर मेदिनीपुर तक उड़ीसा के स्थानीय हाकिम को सारे मन्दिर गिरवा देने की आज्ञा दी और हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर रोक लगवाई । उसने गुजरात का सोमनाथ का मन्दिर, काशी का विश्वनाथ का मन्दिर, मथुरा का केशव- राय का मन्दिर ढा दिए, जिन्हें सारे भारत की जनता आदर और श्रद्धा की दृष्टि से देखती थी। उसने मथुरा शहर का नाम बदलकर इस्लामा- बाद रख दिया और साम्राज्य के सब सूबों, परगनों, शहरों और महत्व- १४०
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