और शान्तिकालीन उद्योग-धन्धों और कला-कौशल को बढ़ावा दे सकें। इस्लामी राज्य की इस नीति का परिणाम यह हुआ कि मुसल- मानों को एक विशेषाधिकार प्राप्त जाति का स्थान मिल गया । अतः इस अधिकारी वर्ग का भरणपोषण राज्य अधिकारी द्वारा ही होता था। इसलिए शांतिकालीन समय में वे आलसी होते चले गए। जीवन के क्षेत्र में उनमें अपने पैरों पर खड़े होने की शक्ति न रही। राज्य के ऊंचे- ऊंचे ओहदों पर बैठना उनका जन्मसिद्ध अधिकार था। उन्हें न योग्यता के प्रदर्शन करने की आवश्यकता थी, न शौर्य की। इस प्रकार मुस्लिम साम्राज्य एक ऐसी जाति के हाथ में रह गया जो अयोग्य और आलसी थी और इस कारण मुस्लिम राज्यों की जड़ खोखली होती चली गई। धन से आलस्य और विलासप्रियता वढ़ी जो इस समूची जाति को दुर्व्यसन और कुकर्मों की ओर ले गई और जव साम्राज्य की समृद्धि का अन्त हुआ तो एक बार ही सर्वनाश वज्र की भांति उन पर आ टूटा । हिन्दू प्रजा, जो उनके आश्रित थी और जिसके साथ सब प्रकार के दुर्व्यवहार किए जा रहे थे, का उपयोग राज्य की उन्नति और विकास के लिए न किया जा सका। उन पर खुलेग्राम कानून के द्वारा या हाकिमों की स्वेच्छाचारिता के कारण दवाब डालकर उनके विकास को रोक दिया गया था। वे पशुओं की भांति किसी प्रकार जीवन व्यतीत कर रहे थे। वे शासकों की चाकरी करते और पैसा कमा कर उन्हें सोंप देते। अपनी गाढ़ी कमाई में से भी अपने लिए बचा रखने का उनको अधिकार न था। यही कारण था कि- मुस्लिम काल में उनका शारीरिक और मानसिक विकास न हुआ । ज्ञान और चिन्तन के क्षेत्र में भी वे पिछड़ गए। जिन मुसलमान बाद- शाहों ने हिन्दुओं के साथ सहिष्णुता की नीति वरती, उन्हें धन और ऊचे पद दिए, उनके साहित्य और कला को उत्साहित किया, उनके राज्य समृद्धिपूर्ण और शक्तिशाली हुए। १३६
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