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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१५

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"क्यों नहीं करोगे, बेटे ? शाह को सलाम करना हमारा धर्म है। हम उनके नौकर हैं।" जीजाबाई ने कहा । "मैं तो नौकर नहीं हूं, मां।" "पुत्र, तुम्हारे पिता नौकर हैं। यह जागीर बादशाह की दी “किन्तु मैं अपनी तलवार से जागीर प्रास करूंगा।" "यह समय ऐसी बातें कहने का नहीं है। पुत्र, तुम शाही सेवा में चले जाओ।" "नहीं जाऊंगा।" "यह तुम्हारे पिता की आज्ञा है पुत्र, जाना होगा।" "अच्छा जाता हूं, पर सलाम मैं नहीं करूंगा।" मुरारजी पन्त उन्हें समझा-बुझा कर दरवार में ले गए । शाहजी वहां उपस्थित थे। उन्होंने वालक शिवाजी को शाह के सम्मुख उपस्थित किया । परन्तु शिवाजी शाह को साधारण सलाम करके खड़े हो गए, न मुजरा किया न कोर्निस । चुपचाप ताकते खड़े रहे। शाही अदव भंग हो गया। यह देख शाह ने वजीर से कहा- "शिवा से पूछो कि क्या वजह है, उसने दरवारी अदव से कोनिस नहीं की।" शिवाजी ने कहा-“मैं जैसे पिताजी को सलाम मुजरा करता हूं वैसे ही आपको की है, पिताजी के समान समझकर।" शाह यह जवाब सुनकर हँस पड़े। उन्होंने शाहजी की ओर देख कर कहा-"शिवा होनहार लड़का है । हम इस पर खुश हैं।" शाहजी ने नम्रता से कहा, "बेअदबी माफ हो, बच्चा है, दरबारी अदब नहीं जानता।"