1 थे, न पिता का सहवास था । विवाह का वे महत्व न समझते थे। इस एकाकीपन ने शिवाजी को अपनी माता के अधिक निकट ला दिया और वे मातृप्रेम में अभिभूत हो माता को देवी के समान पूजने लगे। इस उपेक्षा और एकाकी जीवन ने शिवाजी को स्वावलम्बी, दबंग ओर स्वतन्त्र विचारक बना दिया । उनमें एक ऐसी अन्तःप्रेरणा उत्पन्न हो गई कि वे आगे चलकर सब काम अन्तःप्रेरणा से ही करने लगे। दूसरे के आदेश-निर्देश की उन्हें परवाह न रही । घुड़सवारी, शिकार और युद्ध में वे पूरे मनोयोग से प्रवीण हो गए। साथ ही माता ने उन्हें पुराणों की कहानियाँ और धर्मोपाख्यान सुनाकर उनकी वृत्ति को कट्टर हिन्दू बना दिया । पूना जिले का यह पश्चिमी भाग जो सह्याद्रि पर्वत तलहटी में घने जंगलों के किनारे-किनारे दूर तक चला गया था, मावल कहलाता था। यहाँ मावले किसान रहते थे, जो बड़े परिश्रमी और साहसी थे। शिवाजी ने उन्हीं मावले तरुणों को चुनकर एक छोटी-सी टोली बनाई और उनके साथ सह्याद्रि की चोटियों, घाटियों और नदी किनारे जंगलों में चक्कर काटना आरम्भ किया, जिससे उनका दैनिक जीवन कठोर और सहिष्णु हो गया। धर्म-भावना के साथ चरित्र की दृढ़ता ने उनमें स्वातन्त्र्य प्रेम की स्थापना की, और उनके मन में विदेशियों के हाथ से महाराष्ट्र का उद्धार करने की भावना पनपती गई। । शृङ्खला की ५ बचपन का उठान मुरारजी पन्त ने वीजापुर दरवार से आकर जीजावाई को मुजरा किया और कहा-"महाराज की आज्ञा है कि शिवाजी बीजापुर दरवार में उपस्थित होकर शाह को सलाम करें। शाह की भी यही मर्जी है । अतः आप उन्हें मेरे साथ भेज दीजिए।" परन्तु यह प्रस्ताव बालक शिवाजी ने अस्वीकार कर दिया। कहा-“मैं सलाम नहीं करूंगा।" १२
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