"तो मित्र समझ कर ही वतारो।" "किन्तु आप कौन हैं ? आपका नाम क्या है ?" "अभी इतना ही जानो कि मित्र हूँ। धोखा नहीं होगा।" "आप केवल यह बता दीजिए कि क्या आप महाराज शिवाजी के आदमी हैं ?" "तुम्हारा अनुमान ठीक है।" "तव सुनिए । दुरात्मा उदयभानु इस दुर्ग का स्वामी है। उसके पिता उदयपुर के एक सामन्त थे। उन्हीं का बाँदी पुत्र यह है। इसने उदयपुर के एक बड़े सामन्त की पुत्री कमलकुमारी से जबर्दस्ती ब्याह करना चाहा था । पर उसके पिता ने घृणापूर्वक अस्वीकार कर दिया । इस पर वह आगरे औरङ्गजेब के पास पहुँचा और अपने को उदयपुर का राजकुमार बताकर मुसलमान हो गया जिससे औरङ्गजेब इस पर प्रसन्न हो गया और महाराज जसवन्तसिंह के स्थान पर यहाँ भेज दिया । उधर कमलकुमारी का विवाह भी हो गया और वह विधवा भी हो गई। निस समय यह सेना सहित मेवाड़ की सीमा पार कर रहा था। कमलकुमारी सती होने जा रही थी। इसने तत्काल धावा मारा और कमलकुमारी को मार-काट करके ले भागा। उसके साथ मेरी पत्नी भी थी। वह भी उसने पकड़ ली और दोनों को यहाँ ले आया तथा दोनों को बन्दी करके यहाँ रखा है। बादमाह ने उसका विवाह रोक दिया था । पर अब आज्ञा मिल गई है और कल पहर रात गए विवाह होगा। उसके इस घृगित काम से सभी हिन्दू-मुसलमान उससे घृणा करते हैं । मैंने अपना वैर चुकाने को उसकी नौकरी की है। बस, यही मेरी दास्तान है।" सब हाल सुनकर तानाजी ने भी अपना अभिप्राय कह सुनाया। सुनकर राजपूत ने कहा-"मैं आपकी सहायता करूंगा। किन्तु आपको मेरी पत्नी मुक्त कराना होगा।"
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