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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१५३

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"मैं तलवार की शपयलेक र प्रतिज्ञा करता हूँ, पर तुम्हें भी मेर एक काम करना होगा। किले में मेरा एक शत्रु है उसे मुझे पहचनवा देना होगा।" "वह कौन है ?" “खान अब्दुस्समद फौजदार।" "मैं उसे बखूबी जानता हूँ । वह उदयभानु का दाहिना हाथ है।" "मैं तलवार की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करता हूँ।" दोनों में और भी गुप्त परामर्श हुए। राजपूत ने कहा-"कल एक पहर रात जाने पर कल्याण बुर्ज पर मेरा पहरा है । मेरा साथी एक तुर्क है। उससे मैं निबट लूंगा। आप जैसे बने एक पहर रात गए बुर्ज पर चढ़ जाय।" "गवश्य आऊँगा, मित्र" कहकर तानाजी ने जगतसिंह को विदा किया। अभियान स्तब्ध रात्रि के सन्नाटे में सैनिकों का प्रशान्त दल चुपचाप आगे बड़ा जा रहा था । संकरी पगडण्डी के दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे सरकण्डे के झाड़ खड़े थे। तारों के क्षीण प्रकाश में घोड़ों को कष्ट होता था, पर सेना की अवाध गति जारी थी। हठात् सैनिक रुक गए । अग्रगामी सैनिक ने पंक्ति से पीछे हटकर कहा- "श्रीमान्, वस यही स्थान है।" "आगे रास्ता नहीं ?" "नहीं, श्रीमान् !" "तब यहाँ से क्या उपाय किया जाय ?" १५१