पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१५५

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कोलाहल मच गया। जगह-जगह योद्धा शस्त्र बाँधने और चिल्लाने लगे तथा मशालों के प्रकाश में इधर-उधर घूमने लगे। बारहों व्यक्ति चारों ओर से घिर गए। उनके आगे तानाजी और जगतसिंह थे। वे भीम वेग से फाटक की ओर बढ़े जा रहे थे। प्रहरी मन में भयभीत थे। तानाजी ने एक बार प्रचण्ड जयघोष किया और उछलकर फाटक पर चढ़ बैठे। साथियों ने प्रहरियों को तलवार के वल चीर डाला, तब तानाजी ने साहस करके फाटक खोल दिया। हर हर महादेव का घोष करती मराठों की सेना सूर्याजी के नेतृत्व में किले में घुस गई। इस समय महल में उदयभानु के ब्याह की तैयारी हो रही थी। काजी साहेव चुके थे। कमलकुमारी सिसक-सिसक कर रो रही थी। काजी साहेब उसे दम-दिलासा दे रहे थे। इसी समय हर हर महादेव का शब्द सुनकर उदयभानु चौंक पड़ा। जब उसने सुना कि शत्रु किले में घुस आए हैं तब उसने चीख कर कहा-“सिद्दी हलाल' को भेजो, चन्द्रावल हथिनी को तैयार करो। खाँ साहेब को खबर करो"। काजी से उसने कहा, "झटपट निकाह पढ़ो।" परन्तु सिद्दी हलाल का जगतसिंह ने सिर काट कर महल में फेंक दिया, इसी समय तानाजी ने हाथी की एक सूंड़ काट कर उसके पैरों को जख्मी कर दिया। हाथी चिंघाड़ता हुआ भागा। तब उदयभानु ने अपने वारह वेटों को भेजा। परन्तु वे भी देखते-देखते काम आए। मराठे ऐसी प्रचण्डता से तलवार चला रहे थे कि बड़े-बड़े सूरमाओं का धैर्य भंग हो रहा था निकाह सम्पन्न नहीं हुआ । जगतसिंह और तानाजी महल में घुस आए। अन्ततः उदयभानु तलवार लेकर उनसे जूझने लगा। इसी समय मराठा वीरों ने महल में आग लगा दी। भयानक चीत्कार और रोना-पीटना मच गया। अवसर पाकर उदयभान ने ताककर तलवार का भरपूर हाथ तानाजी के सिर पर दिया, तानाजो १५३