पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/१७

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सबसे बड़ा प्रभाव उन पर रामायण और महाभारत का पड़ा था। यह शिक्षा उन्हें दादा तो देते ही थे, परन्तु उनकी माता भी देती थीं। वे बड़ी भारी रामभक्त थीं। शिवाजी बड़े प्रेम से रामायण- महाभारत की कथा-वार्ता मुनते और उस पर चर्चा करते थे । धीरे-धीरे मावले तरुणों से शिवाजी की जान-पहचान और घनिष्ठता होती गई। अब वह कभी-कभी दिन-दिन भर घर से गायब रहते और इन्हीं मावले तरुणों के साथ वन-पर्वतों में घूमा करते, शिकार करते या शस्त्राभ्यास करते थे। उनकी यह जमात अपने को सब वन्धनों से मुक्त समझती थी। वह किसी भी राज-व्यवस्था की पावन्द नहीं थी । वह पूर्णतया स्वतन्त्र थी । यदा कदा यह मंडली कभी बीजापुर और कभी मुगलों की अमलदारी में घुस जाती और लूटमार करके भाग आती। धीरे-धीरे प्रसिद्ध हो गया कि शाहजी का लड़का शिवा डाकू हो गया है और वह लूटपाट करता फिरता है। दादा कोंगदेव के पास ऐमी शिकायतें आती, तो वे उन्हें सुनी. अनमुनी कर देते, परन्तु शिवाजी के चरित्र पर वे नजर अवश्य रखते थे। धीरे-धीरे रियासत की देखभाल का बोझ वे उन पर डालने लगे। और इसमें शिवाजी का बहुत-सा समय लगने लगा शाहजी की जागीर में कोई किला न था और शिवाजी के मन में यह अभिलाषा थी कि कोई किला उन्हें हथियाना चाहिए। वस उन्होंने साथियों को अपने अभिप्राय से अवगत किया और उन्होंने उसका समर्थन किया। अब वे इमी धुन में रहने लगे कि कैसे कोई किला उनके हाथ लगे। माता और पुत्र "क्यों रे शिव्वा, अभी तू १८ वरस का भी नहीं हुआ और