पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/२८

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प्रश्न न समझे और हिन्दू-धर्म, अबलाओं की रक्षा, गौरक्षा और स्वाधीनता के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करें। तानाजी जैसे सुभट योद्धा और प्रचण्ड सेनापति थे, वैसे ही वे कट-सहिप्णु और विचारशील भी थे। स्वभाव उनका सरल था और प्रकृति हंसमुख थी, परन्तु मुद्दे की बात पर वे चट्टान की तरह अटल रहते थे। ११ फिरङ्गी से मुलाकात "महाराज की जय हो, मेरी एक विनती है।" "क्या कहते हो?" "बीजापुर की सेना परसों अवश्य ही तोरण दुर्ग पर आक्रमण करेगी।" "सो तो सुन चुका हूँ।" "दुर्ग की पूरी मरम्मत नहीं हो पाई है, ऐसी दशा में वह आक्र- मग न सह सकेगा।" "मालूम तो ऐसा ही होता है।" "परन्तु कल संध्या तक दुर्ग विलकुल सुरक्षित हो जायगा।" "यह तो अच्छी बात है।" "परन्तु महाराज, अपराध क्षमा हो।" "कहो।" "एक निवेदन है।" "क्या ?" "केवल एक-एक मुट्ठी चना मेरे सैनिकों और मजदूरों को मिल जाय, तो फिर वे कल संध्या तक और कुछ नहीं चाहते।" “यह तो तुम जानते ही हो, वह मैं न दे सकूँगा।" .