पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/२९

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तानाजी चुप रहे । महाराज भी चुप हो गए। वह चंचल गति से इधर-उधर घूमने लगे। एक प्रहरी ने सम्मुख आकर कहा-"महाराज, एक फिरंगी दुर्ग-द्वार पर उपस्थित है, दर्शनों की इच्छा करता है।" महाराज ने चकित होकर कहा-"फिरंगी? वह कहां से आया है ?" "सूरत से आ रहा है।" "साथ में कौन है ?" "दो सवार हैं।" "वह चाहता क्या है ?" "महाराज से मुलाकात करना।" क्षण भर महाराज ने कुछ सोचा, इसके बाद तानाजी को आज्ञा दी-"उसे महल के बाहरी कक्ष में ले आओ।" तानाजी ने “जो आज्ञा" कहकर प्रस्थान किया, और महाराज भी सोचते हुए महल की ओर चले गए। २२ गहरा सौदा "तुम्हारा देश कौनसा है ?" "फ्रांस देश का अधिवासी हूं।" "क्या चाहते हो ?" "महाराज, मैं कुछ हथियार वीजापुर के वादशाह के हाथ वेचने लाया था, परन्तु यहां आने पर आपकी यशोगाथा का विस्तार प्रजा में सुनकर इच्छा होती है, वे हथियार मैं आपको देदूं, यदि महाराज प्रसन्न हों। मेरे पास ५० तो छोटी विलायती तोपें हैं, ५ हजार बन्दूकें और २७