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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/३३

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60 १४ पहली बोहनी नगर के गण्य-मान्य जौहरी बैठे थे। वहीं चाँदी की संदूकची सम्मुख रखी थी । महाराज ने कहा- "इसका क्या मूल्य है ?" "महाराज, इसका मूल्य कूतना असंभव है। यह मोतियों की माला ही अकेली दस लाख से कम मूल्य की नहीं।" महाराज ने उन्हें विदा करके उस फ्रेंच को बुलाकर कहा- "क्या तुम इन रत्नों का कुछ मूल्य अंकित कर सकते हो?" फिरंगी रत्नों की राशि देखकर दंग रह गया। उसने बड़े ध्यान से मोतियों की माला को देखकर कहा-“यदि महाराज की आज्ञा हो, तो मैं इस अकेली माला के बदले में अपने सम्पूर्ग हथियार दे सकता हूं।" महाराज मुस्कराए। उन्होंने कहा -"उसे नुम रख लो, मेरे निकट वह कंकड़-पत्थर के समान है। वे सभी हथियार और सामग्री मुझे आज संव्या से पूर्व ही मिल जानी चाहिए।" "जो आज्ञा महाराज !" फिरंगी चला गया । X X X चोवदार ने प्रवेश करके कहा-“महाराज की जय हो! एक चर सेवा में उपस्थित हुआ चाहता है ?" "उसे अभी भेज दो।" चर ने महाराज के चरणों में सिर झुकाया । "तुम हो महाभद्र ।" "महाराज की जय हो, सेवक इसी क्षरण सुसमाचार निवेदन किया चाहता है।" "क्या समाचार है ?" (