पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/३८

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एक सवार तीर की भाँति घोड़ा दौड़ाकर ग्रामवासियों के निकट आया। उसने कहा-"सावधान रहो, छत्रपति महाराज शिवाजी ने हिन्दू- धर्म के उद्धार का बीड़ा उठाया है, वे साक्षात् शिव के अवतार हैं । आज सूर्योदय होते ही तुम्हें उनके दर्शन होंगे।" यह सुनते ही ग्रामवासी चिल्ला उठे-'महाराज शिवाजी की जय।" "पर सुनो, आज इस गांव की परीक्षा है । भाइयो, यवन-सेना इधर को आ रही है। आज इसी गांव में उसका अन्त होगा, और वीरता का सेहरा इस गाँव के नाम बँधेगा।" ग्रामवासियों ने उत्साह से कहा-"हम तैयार हैं, हम प्राग देंगे।" "भाइयो, हमारी विजय होगी। प्रारण देने की आवश्यकता नहीं । अभी दो पहर का समय हमें है । आओ, घाटी का उस पार का द्वार वृक्षों और पत्थरों से बन्द करदें और सब लोग पर्वतों पर चढ़कर छिप वैठे। बड़े-बड़े पत्थर इकट्ठे रखें, ज्यों ही यवन-दल घाटी में घुसे, देखते रहो । जब सब सेना घाटी में पहुँच जाय, ऊपर से पत्थरों की भारी मार करो। पीछे से मार्ग को महाराज शिवाजी स्वयं रोकेंगे।" समस्त गांव "जय शिवाजी महाराज" कहकर कार्य में जुट गया । X X X प्रातःकाल होने से पूर्व ही यवन-दल तेजी से घाटी में घुसा। तानाजी पीछे धावा मारते आ रहे हैं यह वे जानते थे। घाटी पार करने पर वे सुरक्षित रहेंगे, इसका उन्हें विश्वास था। परन्तु एकबारगी ही आगे बढ़ती हुई सेना की गति रुक गई। बड़ी गड़बड़ी फैली । कहाँ क्या हुआ, यह किसी ने नहीं जाना। परन्तु घाटी का द्वार भारी-भारी पत्थरों और बड़े-बड़े वृक्षों को काटकर बन्द कर दिया गया था। उसके बाहर खड़े ग्रामवासी और सवार दरारों के द्वारा तीर छोड़ रहे थे।