दौलताबाद आवाद न हुआ। अब उसने सवको दौलताबाद से दिल्ली वापस जाने का हुक्म दिया। अव प्रजा पर ऐसी दुहरी मार पड़ी कि भूख, गर्मी-सर्दी और यात्रा के कष्टों से वचकर बहुत कम लोग दिल्ली पहुंचे। खफ्ती और सनकी बादशाह की मूर्खता से हजारों घर बर्बाद हो गए, राजधानी उजड़ गई और मुहम्मद तुगलक को भी विपत्तियों के समुद्र में डुबकियां लगानी पड़ीं। इसी समय तैमूरलंग ने आंधी की तरह भारत में प्रवेश किया। उसने पेशावर से दिल्ली तक मस्त हाथी की तरह भारतवर्ष को पददलित किया, जिसे देखा लूटा और कत्ल किया, अन्त में सबकुछ आग के सुपुर्द कर दिया। दिल्ली उसके सिपाहियों की तलवार और आग से तबाह हो गई, और ये डाकू बर्वाद शहर तथा उजड़े हुए घरों को, विधवाओं और अनाथों के हाहाकार से भरकर एवं फूट और महामारी के अर्पण करके वापस लौट गया । उसके वाद महीनों दिल्ली बिना बादशाह के रही। बाद में लोधी वंश ने गद्दी को संभाला, परन्तु उसका शासन दिल्ली के घेरे से अधिक दूर तक नहीं था । आस-पास के प्रान्तों ने दिल्ली की आवीनता का जुआ उतार फेंका, दक्षिण में तीन सशक्त राज्यों की स्थापना हुई–एक तैलंगाना राज्य, दूसरा विजय- नगर साम्राज्य, तीसरा बहमनी मुस्लिम राज्य । कालान्तर में वहमनी राज्य चार हिस्सों में बंट गया-आदिलशाही वीजापुर में निजामशाही अहमदनगर में, कुतुबशाही गोलकुण्डा में और इमारशाही बरार में एलिचपुर के निकट । जिस समय का उल्लेख इस उपन्यास में है, विजयनगर और तैलंगाना के राज्य मुसलमानी रियासतों में मिल चुके थे। अकबर और जहांगीर ने बहुत चाहा कि वे काश्मीर से कन्याकुमारी तक मुगल साम्राज्य का विस्तार करें। परन्तु उन्हें आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई । केवल बरार और खानदेश ही उनके हाथ लग पाए । अहमदनगर के बादशाहों के साथ मुगलों के संघर्ष सन् १६३५ तक जारी रहे, इसी प्रकार .
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