पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/५१

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२० मुगल साम्राज्य की कब्र शताब्दियों तक इस्लामी राज्य का तूफान सह्याद्रि की चट्टानों से टकराकर विफल मनोरथ वापस लौटता रहा, यदि किसी को कुछ सफलता हुई भी तो वह चिरस्थायी न रही। मुगलों के लिए तो दक्षिण एक मृगतृष्णा ही बना रहा। अकबर से लेकर औरंगजेब तक सब बाद- शाहों ने दक्षिण पर ललचाई दृष्टि डाली, किन्तु विफलता ही प्राप्त हुई। जो यत्किंचित् सफलता प्राप्त हुई भी उसने मुगल साम्राज्य को ऐसे जाल में फांसा कि अन्त में दक्षिण ही मुगल साम्राज्य की कब्र बन गया । सबसे पहले दक्षिण में कदम रखने का साहस अलाउद्दीन खिलजी ने किया और धोखा देकर देवगिरि के राजा रामदेव को मारकर देवगिरि को दौलताबाद बनाया। यह दक्षिण में मुसलमानी राज्य की बुनियाद थी। अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर ने वारंगल और द्वारसमुद्र तक घावे किए और मैमूर तक का प्रदेश जीत लिया। परन्तु उसका यह राज्य-विस्तार अस्थायी और कमजोर ही रहा । उसके बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा और उसके दिल में यह सनक समाई कि दिल्ली के स्थान पर दक्षिण को ही केन्द्र बनाया जाय और दौलताबाद को राजधानी बनाया जाय । यह एक विचित्र, सनकी और जिद्दी आदमी था, उसने दिल्ली शहर के सब रईसों, अहलकारों और दूकानदारों को दौलताबाद में जा बसने का हुक्म दिया। शहर का शहर उठकर चल पड़ा, परन्तु लाखों आदमियों के ठहरने योग्य न सराय की व्यवस्था थी, न खाने के अनाज की, और न स्वास्थ्य-रक्षा का ही ठीक प्रवन्ध था। परिणाम यह हुआ कि हजारों आदमी रास्ते में मर गए और जो दौलताबाद तक पहुँचे, वे ऐसे दुर्दशाग्रस्त हो गए कि वे किसी शहर को बसाने के योग्य न थे। इस प्रकार दिल्ली उजड़ गई लेकिन , स० च०४ ४३