पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/५७

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था- २२ सेर को सवा मेर मुगलों से सन्धि करके बीजापुर दरवार को जरा सांस लेने की फुरसत मिली। बीजापुर का नया शासक अभी बच्चा ही था। उमकी मां बड़ी साहिबा के नाम से सब काम-काज देखती थी। उसने सोचा कि इस अवसर पर अपने इस उठते हुए शत्रु को खत्म कर दिया जाय । शिवाजी को मार डालने का एक षड्यन्त्र विफल हो ही चुका था । इम समय बीजापुर दरवार में एक उच्च सरदार अब्दुल्ला -जिसे कर्नाटक के युद्ध में वीरता दिखाने के उपलक्ष्य में अफजलखा का खिताब मिला था। वह मुलतान का कुछ सम्बन्धी भी था बड़ी माहिबा ने उमी को समझा-बुझाकर पांच हजार सवार तथा मात हजार पैदल मेना देकर शिवाजी की ओर रवाना कर दिया । अफजलखाँ ने बड़े दर्प में कहा था कि मैं इस पहाड़ी चूहे को अपनी तलवार की नोंक पर रखकर ले आऊँगा। वह बड़े डील-डॉल का आदमी था। इस समय शिवाजी जंजीरे के आक्रमण में फैमे हुए थे। परन्तु अफजल के आने की सूचना पाते ही उन्होंने प्रतापगढ़ की ओर प्रस्थान किया। अफजलखाँ ने दक्षिण सीमा से शिवाजी के राज्य में प्रवेश किया। वह जल्द से जल्द पूना पहुंचना चाहता था । सवसे प्रथम उसने तुलजापुर के किले पर आक्रमण किया, वहाँ का भवानी का मन्दिर भङ्ग किया और मन्दिर में एक गाय का वध किया तथा उसका रुधिर सारे मन्दिर में छिड़का। पुजारी प्रथम ही मूर्ति को लेकर भाग गए थे। शिवाजी ने जब अजफलखा की गतिविधि देखी तो राज- गढ़ से जावली में आकर युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी। अजफलखाँ ने जब देखा कि शिवाजी ने अपना स्थान बदल दिया है तो वह दक्षिणी