पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/५६

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रहे थे, ठीक उसी समय शिवाजी उत्तर में जुन्नर ताल्लुका को धड़ाधड़ नूट रहे थे और एक दिन अंधेरी रात में कमन्द के द्वारा वे जुन्नर शहर की चहारदीवारी को चुपके से फांद गए और वहां के पहरेदारों को मार कर तीन लाख हूण, २०० घोड़े, बहुत से वहुमूल्य वस्त्र और रत्न लेकर चम्पत हुए। इन उपद्रवों से घबराकर औरङ्गजेब ने नसीरीखां की कमान में तीन हजार घुड़सवार देकर अहमदनगर की ओर रवाना किया। उधर लूटमार करते हुए शिवाजी और उनके साथी अहमदनगर तक पहुंचे ही थे कि नसीरीखां और मुलतखतखां से उनकी जवरदस्त मुठभेड़ हुई । अपनी नीति के अनुसार साधारण-सी लड़ाई करके शिवाजी वहां से भाग खड़े हुए और तब मुगल सेना शिवाजी के प्रदेशों में घुस गई और जवाबी कार्यवाही के तौर पर वहाँ के गावों को उजाड़ने और मारकाट करने लंगी। इसी समय शाहजहां ने बीजापुर से संधि कर ली और औरङ्गजेब को बीजापुर से अपना घेरा उठाना पड़ा। यह घटनाएं सन् १६५७ के ग्रीष्मकाल की हैं। परन्तु इसी समय बादशाह शाहजहाँ आगरे में बीमार पड़ा। और मुगल सिंहासन के उत्तराधिकार के लिए गृहयुद्ध की घटाएँ छा गईं। औरङ्गजेब आगरे की ओर चल दिया। वीजापुर राज्य में बहुत-से घरेलू झंझट उठ खड़े हुए थे, वहाँ के वजीर खान मोहम्मद की हत्या कर दी गई । अब परि- स्थितियों ने शिवाजी के सामने का मैदान साफ कर दिया था। उन्होंने क्षण भर भी विलम्ब न करके पश्चिमी घाट को पार किया और कोंकण में जा धमके। बिना ही किसी कठिनाई के कल्याण और भिवंडी के समृद्ध शहर उनके हाथ में आ गए, जहाँ से अथाह धन और अतुल सामग्री उनके हाथ लगी । कल्याण और भिवंडी को अपनी जलसेना का प्रमुख बन्दरगाह बनाया और माहुली का किला भी सर कर लिया। तभी खबर आई कि औरङ्गजेब ने बूढ़े शाहजहां को कैद करके तथा भाई मुराद और दारा को कत्ल करके आलमगीर के नाम से मुग आरोहण किया है। तख्त पर