पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/७५

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जव शिवाजी को वीजापुर की इस कार्यवाही का पता लगा तो उन्होंने जहाँ-तहां छुटपुट लड़ाई करके और तेजी से लौट कर पन्हाला दुर्ग में आश्रय लिया । इस समय उनकी सारी सेना बिखरी हुई थी तथा पन्हाला दुर्ग में बहुत कम सेना थी । सिद्दी जौहर के १५००० सवारों ने पन्हाला के किले को घेर लिया और पास की पहाड़ी पर मोर्चा जमा कर तोपों से आग उगलना प्रारम्भ कर दिया। गरमी के भीषण दिन थे और पहाड़ियां लोहे की तरह तप कर लाल हो रही थीं। किले में रसद और पानी की भी बहुत कमी थी। इससे दिन-पर-दिन शिवाजी की कठिनाइयां बढ़ती जाती थीं। इस समय रघुनाथ पन्त फतहखां से लोहा ले रहा था, जो कोंकण में शिवाजी की स्वायत्त भूमि पर हमले कर रहा था । पुरन्दर, मंगर व प्रतापगढ़ और उसके आसपास की भूमि की रक्षा मोरो पन्त के सुपुर्द थी। सिद्दी जौहर की सेना बे-रोकटोक पन्हाला दुर्ग के समीप तक मा पहुँची थी और उसने दुर्ग को घेर लिया था। इस सेना को यहां तक आने में मराठों ने बाधा नहीं पहुँचाई थी, किन्तु ज्यों ही वजापुरी सेना मोर्चे वना दिए, नेताजी पाल्कर ने प्रानपास के प्रान्तों को उगाड़ना प्रारम्भ कर दिया। इससे शत्रु की सेना को रसद की सामग्री का अकाल पड़ गया। किन्तु सिद्दी जौहर मोर्चे पर डटा रहा । किले को घेरे पांच महीने हो रहे थे। शिवाजी के पास वहुत कम सेना और रसद थी। फिर भी उन्होंने वीरतापूर्वक पांच महीने तक बीजापुरी सेना से पन्हाला में कड़ा मोर्चा लिया । अब किले में न एक बूंद पानी था, न अन्न । जो सैनिक वच रहे थे, उनमें बहुत से रोगी थे । मरे हुए घोड़ों और सैनिकों की लागों के सड़ने से किले का वातावरण दूषित हो गया था। इस समय शिवाजी के पान उनका स्वामिभक्त सरदार वाजीप्रभु और उसके थोड़े से ७३