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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/७६

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सैनिक थे। वाजीप्रभु ने शिवाजी को वहां से निकल जाने का परामर्श दिया, पर शिवाजी संकट में साथियों को छोड़ कर जाने में राजी नहीं होते थे। अन्त में बाजीप्रभु ने एक साहसपूर्ण योजना बनाई । उसने सिद्दी जौहर के पास संधि-प्रस्ताव भेजा और युद्ध वन्द करने की प्रार्थना की। जिससे सिद्दी ने प्रतिवन्ध ढीले कर दिए । युद्ध बन्द हो गया । दूतों का अभी आना-जाना चल ही रहा था कि अवसर पाकर शिवाजी दुर्ग से भाग निकले। भयानक अंधेरी रात थी। आकाश में वादल घिर रहे थे । हवा के झोंके पहाड़ियों से टकरा रहे थे। इसी समय अंधेरी रात में मुट्ठी भर वीर मराठों ने नङ्गी तलवार लेकर किले का फाटक खोल दिया और द्रुत गति से पलायन किया। बीजापुरी सैनिक मार-मार करते दौड़े, परन्तु वीरवर बाजीप्रभु तथा सैनिकों ने गजपुर की घाटी में उलट कर पीछा करने वालों को अपनी छातियों की दीवारों से रोक दिया । वे एक-एक कर अपनी जगह कट मरे और उनकी लोथें उनके द्वारा मारे गए शत्रुओं को लोथों पर गिर पड़ीं। परन्तु शिवाजी सकुशल बचकर वहाँ से सत्ताईस मील दूर विशालगढ़ जा पहुँचे। इस समय उनके साथ अकेला उनका जीवनसाथी घोड़ा और विजयिनी तलवार थी। बाकी सब शूर उसी मुहिम में खेत रह गए थे। २६ पिता शत्रु का संधिदूत शिवाजी के इस प्रकार पन्हाला दुर्ग से बच निकलने से आदिल- शाह द्वितीय बहुत क्रुद्ध हुआ। उधर अव शिवाजी अत्यन्त उग्रता से बीजापुर राज्य का विध्वंस कर रहे थे। इससे बौखलाकर आदिलशाह ७४