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पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/८०

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7 उसने उत्तर कोंकरण पर एक सेना भेजी जहां एक छोटी-सी मुगल-सेना पहले ही से पड़ी हुई थी। परन्तु उसकी यह चाल शिवाजी से छिपी न रही। शिवाजी ने भी तेजी से आगे बढ़कर उमरखिण्ड के जङ्गलों में उसे इस प्रकार घेर लिया कि मुगल-सेना को आगे बढ़ने और पीछे लौटने के सब रास्ते बन्द हो गए । पशु और सैनिक प्यास से तड़प-तड़प कर मरने लगे। निरुपाय हो अपना सब असबाब, रुपया-पैसा और हथियार शिवाजी को सौंपकर मुगलों ने अपनी जान बचाई। इसके बाद शाइस्ताखां की सेना के साथ छुटपुट कार्यवाही होती ही रही। शाइस्ताखां बड़ा सावधान राजपुरुष और मंजा हुआ सिपाही था। उसने बड़ी चतुराई से पूना में अपने निवास का प्रबन्ध किया था । अजफलखां की दुर्गति से वह बहुत भयभीत था। उसने अपनी नौकरी में जितने घुड़सवार मरहठे थे, सवको बर्खास्त कर दिया तथा शहर के पहरेदारों को कड़ी आज्ञा दे दी कि बिना परवाना किसी हिन्दू को शहर में न घुसने दिया जाय। उसने लाल महल में अपना डेरा डाला जो शिवाजी का वाल्य- काल का भवन था। शाइस्ताखों के साय उसका हरन भी था। महल के चारों ओर उसके अंगरक्षकों-नौकरों के रहने के स्थान, नौबतखाना, दफ्तर आदि थे। दक्षिण की ओर जो सड़क सिंहगढ़ को जाती थी, उसके दूसरे छोर पर राठौर महाराज जसन्तसिंह अपने १०,००० राठौर सवारों के साथ मुकीम थे। इस सुरक्षा व्यवस्था के होते हुए संभव न था कि शाइस्ताखां के ऊपर कोई आकस्निक आक्रमण किया जा सके। परन्तु शिवाजी ने बड़ी ही सूझ-बूझ से शाइस्ताखां पर आक्रमण करने की योजना बनाई। उन्होंने नेताजी पाल्कर और पेशवा मोरो पन्त के आधीन एक-एक हजार मावले पैदल और घुड़सवारों की दो सहायक टुकड़ियाँ देकर उन्हें मुगल पड़ाव की बाहरी सीमा के दोनों ओर एक- एक मील की दूरी पर जा डटने का आदेश दिया और चार सौ चुने हुए ७८