पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/८४

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हुअा था, लोग उठकर प्रातः-कृत्य कररहे थे-कोई दतून कर रहा था, कोई स्नान की चिन्ता में था। दुकानदारों ने दूकाने अभी खोली ही थीं कि अचानक यह अफवाह फैल गई कि मराठे नगर लूटने को धंसे चले या रहे हैं और वे गण्डावी तक पहुंच चुके हैं । गण्डादी सूरत से कोई २८ मील के अन्तर पर था । नगर में घबराहट फैल गई। लोगों में आतंक छा गया । किसी ने विश्वास किया, किसी ने नहीं । कुछ लोग स्त्री-दच्चों को लेकर नगर से भाग गए । कुछ अपनी जान बचाने को नदी पार कर नदी के दूसरी ओर चले गए। कुछ धनी लोगों ने किलेदार को रिश्वतें दे देकर किले में शरण ली। परन्तु वह दिन योंही सकुशल बीत गया । लोग कुछ निश्चिन्त परन्तु दूसरे दिन पहर दिन चढ़े शिवाजी ने मूरत के पूर्वी मोर के बुरहानपुरी दरवाजे से बाहर कोई दो फर्लाङ्ग की दूरी पर एक बाग में अपना डेरा खड़ा किया । शहर का कोतवाल इनायतखा को उन्होंने कहला भेजा कि मैं बादशाह से मिलने आगरे जा रहा हूँ। मेरा इरादा शहर के भीतर जाने का नहीं है । मैं बाहर ही बाहर जाऊंगा। परन्तु मराटे दूसरे दिन सूर्योदय होते ही नगर में घुम पड़े और घरों को लूट- लूट कर उनमें आग लगाने लगे। चारों ओर कुहराम नत्र गया । कोतवाल इनायतखां नगर को पराजित छोड़कर किले में जा छिना लगा- तार चार दिन तक यह लूटमार और विध्वंस का काम चलता रहा । प्रतिदिन सैकड़ों घर लूटपाट कर आग की भेंट दिए जाने लगे। नगर का लगभग दो-तिहाई भाग सर्वथा नष्ट हो गया । इत्र फैक्टरी के पास वहरनी बौहरे का विशाल महल था । दहरजी उस काल संसार के सबसे धनवान पुरुष थे। उनकी जायदाद अस्सी लाख रुपयों की बताई जाती थी। वहरजी के महल को मराठों ने तीन दिन तक जी भरकर लूटा। वहाँ के फर्श तक खोद डाले और अन्त में उसमें आग लगादी। नगर ८२