माहजी के मरने का दुख शिवाजी और जीजावाई को भी बहुत हुआ । यद्यपि उन्होंने इन दोनों माता-पुत्र को त्याग दिया था, फिर भी जीनाबाई सनी होने को तैयार हो गईं। पर शिवाजी ने उन्हें समझा- बुझाकर रोक दिया। मल्लूजी को अहमदनगर मे राजा की उपाधि मिली थी। शाहजी के मरने पर वह उपाधि शिवाजी ने ग्रहण की और रामगढ़ में एक टकसाल स्थापित की, जहाँ राजा शिवाजी के नाम के निक्के ढाले जाने लगे। मिर्जा राजा जयसिंह शाइस्तान्नों की हार ने ही औरङ्गजेब को बहुत क्षुब्ध कर दिया था। अब मूरत की इस लूट ने उसे बौखला दिया। परन्तु इसी ममय आगरे में शाहजहाँ की मृत्यु हो गई और बहुत-सा समय उसके मातम में बीत गया । इस समय दक्खिन का नया सूदेदार शाहजादा मुअज्जम और जाबाद में पड़ा हुआ शिकार और आमोद-प्रमोद में बेफिक्री से अपने दिन काट रहा था । शाइस्ताखां के दक्षिण में जाने के बाद अब उसे एक वर्ष बीत रहा था, फिर भी दक्षिा में आकर उसने कोई मार्के का काम नहीं किया था। सूरत की लूट जैसी जवरदस्त घटना हो जाने पर भी वह कान में तेल डाले पड़ा रहा । औरङ्गजेब ने अब सलाह-मशविरा करके अपने सारे हिन्दू और मुसलमान सेनापतियों में सर्वश्रेष्ठ सेनापति महाराज पयसिंह कछवाहा को और अपने अनुभवी और प्रसिद्ध सेनापति दिलेरखाँ को शिवाजी को कुचल डालने के लिए रवाना किया। जयनिह एक मजा हुआ सिपाही और दूरदर्शी सेनापति था। उमने मध्य एशिया में स्थित बल्ख से लेकर सुदूर दक्षिण में बीजापुर तक और पश्चिम में कन्धार से लेकर पूर्व में मुंगेर तक साम्राज्य के हर ५४
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