पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ये मत्र कैद हो जाएंगे और उन्हें अपमानित होना पड़ेगा। निरुपाय शिवाजी ने जयसिंह के पास संधि का प्रस्ताव भेजा। ११ जून को प्रातःकाल पुरन्दर के नीचे तम्बू में जयसिंह ने दरबार किया और शिवाजी ने राजसी ठाठ से वहां आकर जयसिंह से भेंट की। जयसिंह ने यथोचित सम्मान से शिवाजी का स्वागत किया । मुनि-बानी आधीरात तक चलती रही और अन्त में पुरन्दर की प्रसिद्ध सन्धि पर दोनों पक्ष के हस्ताक्षर हो गए। सन्धि की शर्तों के अनुसार चार लाख हुन वार्षिक आय वाले शिवाजी के तेईस किले मुगल साम्राज्य में मिला लिए गए और राजगढ़ के किले सहित एक लाख हुन की वार्षिक आय वाले कुल वारह किले इस शर्त पर शिवाजी के पास रहने दिए गए कि वे मुगल साम्राज्य के राजभक्त सेवक बने रहेंगे। विशेष रूप से उनका यह आग्रह भी स्वीकार कर लिया गया कि अन्य राजाओं की भांति उन्हें शाही दरबार में निरन्तर रहने से मुक्त किया जाएगा, लेकिन उनका पुत्र उनके प्रतिनिधि की हैसियत से बादशाह के दक्षिण आने पर उसके दरबार में उपस्थित रहेगा और दक्षिण के मुगल सूबेदार के माथ स्थायी रूप से रखे जाने वाले पांच हजार सेना का नेतृत्व भी उनका पुत्र करेगा। इन पांच हजार सवारों की तनख्वाह के लिए एक जागीर शिवाजी को दे दी गई। शिवाजी ने एक समझौता यह भी किया कि मुगल बादशाह यदि कोंकण की तराई में चार लाख हुन की वार्षिक आय का प्रदेश उनके अधिकार में छोड़ दे और बीजापुर की विजय के बाद भी ये प्रदेश उन्हीं के अधिकार में रहने दिए जाएं तो वे तेरह वार्षिक किश्तों में चालीस लाख हुन बादशाह की भेंट करेंगे। यह भी तय हुआ कि बीजापुर की चढ़ाई के बाद शिवाजी मुगल दरवार में बादशाह को सलाम करने के लिए जाएंगे।