पृष्ठ:सह्याद्रि की चट्टानें.djvu/९८

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क्षेत्र में पीछे हटने लगी किन्तु ज्यों ही विजयी मुगल सेना अपने पड़ाव की ओर किरी, बीजापुरी सेना ने दोनों वगलों और पृष्ठ भाग पर आक्र- मन कर दिया। बड़ी ही कठिनाई से परिस्थिति को संभाला गया। उधर मरजान्वा ६ हजार घुड़सवार लेकर मंगलविदेह के किले पर जा धमका । मुगल किलेदार सरफराज खां किले से बाहर निकला और लड़ता हुआ काम आया। दो दिन रुकने के बाद जयसिंह ने दूसरा युद्ध किया। दक्षिणी सवारों ने पूर्व की भांति अलग-अलग दलों में बँटकर छुट-पुट आक्रमण किए, किन्तु सूर्यास्त होते-होते वे भाग निकले। ६ मील तक मुगलों ने भागते हुए उनका पीछा किया । अब जयसिंह बीजापुर से कोई १२ मील तक आ पहुँचा, परन्तु यहाँ आदिलशाह ने बड़ी हड़ता और वीरता से उसका सामना किया। जयसिंह तेजी से बढ़ता हुआ मंगलविदेह तक पहुँचा परन्तु उसके पास न बड़ी-बड़ी तोपें थीं और न आवश्यक युद्ध सामग्री ही । यह सामग्री उसने परेण्डा के किले से नहीं मंगवाई थी। इसी ममय आदिलशाह को गोलकुण्डा से भारी सहायता मिल गई और मुगल सेना को भूखों मरने की नौबत आ गई। उसे वापस लौटना पड़ा और बीजापुरी सेना ने उसे खदेड़ा। २७ जनवरी को वह परेन्डा से १६ मील दक्षिण में सोना नदी पर स्थित सुलतानपुर में जा पहुंचा। उमे जनवरी का पूरा महीना लौटने में लग गया और इस बीच उसे बड़ी दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा। सरजाखां ने उसकी वहुत-सी खाद्य व युद्ध-सामग्री लूट ली। उधर शिवाजी ने पन्हाला के किले पर जो आक्रमगा किया, उसमें शिवाजी के कोई १,००० सैनिक काम आए और फिर भी किला उनके हाथ नहीं आया। शिवाजी का प्रधान अधि- कारी नेता शिवाजी से विश्वासघात करके और वीजापुरियों से ४ लाख हुन रिश्वत लेकर उनसे जा मिला। ये सब दुर्घटनाएँ तो मुगलों के अभियान के विरोध में थी ही, कि आदिलशाह की मदद के लिए