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पृष्ठ:साफ़ माथे का समाज.pdf/१६३

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अनुपम मिश्र


तालाब के आगौर में भी पशुओं के आने-जाने पर रोक थी। इस काम में भी लोग साल भर लगे रहते थे। उनकी व्यवस्था बंदेला मान्यम से की जाती थी।

तालाब से जुड़े खेतों में फ़सल बुवाई से कटाई तक पशुओं को रोकना एक निश्चित अवधि तक चलने वाला काम था। यह भी बंदेला मान्यम से पूरा होता था। इसे करने वाले पट्टी कहलाते थे।

सिंचाई के समय नहर का डाट खोलना, समय पर पानी पहुंचाना एक अलग ज़िम्मेदारी थी। इस सेवा को नीरमुनक्क मान्यम से पूरा किया जाता था। कहीं किसान पानी की बर्बादी तो नहीं कर रहे-इसे देखने वालों का वेतन कुलमकवल मान्यम से मिलता था। तालाब में कितना पानी आया है, कितने खेतों में क्या-क्या बोया गया है, किसे कितना पानी चाहिए-जैसे प्रश्न नीरघंटी या नीरुकुट्टी हल करते थे। यह पद दक्षिण में सिर्फ हरिजन परिवार को मिलता था। तालाब का जल स्तर देखकर खेतों में उसके न्यायोचित बंटवारे के बारीक हिसाब-किताब की विलक्षण क्षमता नीरुकुट्टी को विरासत में मिलती थी। आज के कुछ नए समाजशास्त्रियों का कहना है कि हरिजन परिवार को यह पद स्वार्थवश दिया जाता था। इन परिवारों के पास भूमि नहीं होती थी इसलिए भूमिवानों के खेतों में पानी के किसी भी विवाद में वे निष्पक्ष हो कर काम कर सकते थे। यदि सिर्फ़ भूमिहीन होना ही योग्यता का आधार था तो फिर भूमिहीन ब्राह्मण तो सदा मिलते रह सकते थे! लेकिन इस बात को यहीं छोड़ें और फिर लौटें मान्यम पर।

कई तालाबों का पानी सिंचाई के अलावा पीने के काम भी आता था। ऐसे तालाबों से घरों तक पानी लेकर आने वाले कहारों के लिए उरणी मान्यम से वेतन जुटाया जाता था।

उप्पार और वादी मान्यम से तालाबों की साधारण टूट-फूट ठीक

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