पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०१

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बंटवारे की योजना असल में तो अंग्रेजी सरकार की थी जो ऐसी स्थितियां पैदा करना चाहती थी कि नेतृत्व देश के दो टुकड़े करने पर राजी हो जाएं, और इसमें वे कामयाब हुए। 1942 में क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव आया, जिस पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग की सहमति बन गई थी । इस प्रस्ताव के अनुसार केन्द्र के पास केवल रक्षा, संचार व मुद्रा व विदेशी मामलों के विभाग रहने थे और बाकी सारे विभाग राज्य सरकारों के पास थे, इसमें एक प्रावधान यह भी था कि दस वर्ष के बाद किसी भी राज्य को स्वतंत्र होने का अधिकार था । तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर नेहरू इस बात को मानते थे कि मजबूत केन्द्र के बिना देश का विकास नहीं हो सकेगा। नेहरू अपने इस विचार के कारण तथा पटेल भी मजबूत केन्द्र के पक्षधर थे, इसलिए विभाजित मगर मजबूत केन्द्र वाला देश चुना। अंग्रेज ऐसा चाहते ही थे क्योंकि विभाजित व कमजोर देश पर ही साम्राज्यवादी शक्तियों का दबदबा रह सकता है। मुसलमानों को यह कहना कि उनके लिए अलग देश बन गया है वे वहां चले जांए, अन्यायपूर्ण है। जिन लोगों को पाकिस्तान चाहिए था, जो पाकिस्तान में अपनी तरक्की देख रहे थे, वे बंटवारे के बाद चले गए जो यहां रह गए वे इसलिए कि उनको पाकिस्तान मंजूर नहीं था, इसी से उनकी देश भक्ति व भारत से लगाव सिद्ध है। फिर बंटवारे में आबादियों की अदला- बदली की शर्त नहीं थी । साम्प्रदायिक शक्तियां जो यह कहती हैं कि मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए वे स्वयं भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि भारत में लगभग 12 करोड़ मुसलमान हैं जिनको न तो पाकिस्तान में भेज पायेंगें और न ही पाकिस्तान उनको अपने यहां स्थान देगा । वे भारत के नागरिक हैं, उनको भी पाकिस्तान में उसी तरह का व्यवहार मिलता है जैसा कि भारत के किसी भी नागरिक को। लेकिन साम्प्रदायिक तत्त्वों का मकसद देश में अशांति व तनाव पैदा करना, लोगों को धर्म के आधार पर एकत्रित करके सत्ता हथियाना व आम लोगों का शोषण करना व लोगों को वर्ग के आधार संगठित होने से रोकना है। साम्प्रदायिकता का चरित्र बताते हुए विभूति नारायण राय ने लिखा कि 'साम्प्रदायिकता को हमेशा एक शत्रु की जरूरत होती है और इस मामले में शत्रु दूसरा धर्मावलंबी ही हो सकता है।' मुसलमानों को हिन्दुओं का शत्रु के रूप में और उससे आगे बढकर देश द्रोही के रूप में प्रस्तुत करके भ्रम पैदा करते हैं। मुसलमान भारत के प्रति उसी प्रकार वफादार हैं जैसे कि अन्य धर्म के लोग। इस बात के उदाहरण बार बार सामने आए हैं। 1948 में जब पाकिस्तानी सेना ने काश्मीर पर हमला कर दिया तो काश्मीर के मुसलमानों 102 / साम्प्रदायिकता