पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१००

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सारे मुसलमानों का समर्थन हासिल नहीं था । 1. विख्यात अलीम और इस्लामिक इतिहासकार मौलाना शिबली ने मुस्लिम लीग के बनने पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते हुए इसे 'अलीबुल- खिलकत' (अजीब उत्पत्ति), 'एक फर्जी बेकार चीज', 'पोलिटिकल तमाशगर',' बगीचा-ए-अतफल' (बच्चों का खेल) खिल्ली उड़ाई । 2. अबुल कलाम मौलाना आजाद, हकीम अफजल खान, डा. अंसारी, खान अब्दुल गफ्फार खान, मौलाना महमुदल हसन, मौलाना हुसैन अहमद मदनी, अताउल्ला शाह बुखारी, चौ. अफजल हक, रफी अहमद किदवई आदि नेताओं ने मुस्लिम लीग की संकीर्ण राजनीति का विरोध किया था। 3. 1937 में मुस्लिम लीग ने 482 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें वह केवल 109 सीटें ही जीत पाई । इस चुनाव में 73,19,445 कुल मुस्लिम वोट पड़े थे, जिसमें से मुस्लिम लीग को केवल 3,21,772 वोट मिले थे, जो कुल वोट का केवल 4.4 प्रतिशत था। 4. पंजाब, बंगाल, उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रान्त जैसे मुस्लिम बहुल राज्यों में कभी बहुमत तो क्या सम्मानजनक प्रदर्शन भी न कर पाई । 5. 23 मार्च, 1940 को जब मुस्लिम लीग ने लाहौर प्रस्ताव पारित किया तो उसके दो महीने बाद चालीस हजार के करीब अंसारी मुसलमानों ने इसके विरोध स्वरूप प्रदर्शन किया। 6. सुभाषचन्द्रबोस की आजाद हिंद फौज के कप्तान अबीद हसन ने 1941 में 'जय हिंद' का नारा दिया था। जो नेताजी की फौज में तो अभिनंदन के लिए तथा अभिवादन के लिए प्रयोग किया जाता था, बल्कि आज भी सारे भारतीयों का मंत्र है । इस तरह यह कहना कि पाकिस्तान बनवाने में सारे मुसलमानों का हाथ है सरासर गलत है, और उनकी देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाना है । दूसरे, पाकिस्तान बनवाने में केवल मुसलमानों की भूमिका नहीं है, बल्कि अंग्रेजी सरकार व कांग्रेस का नेतृत्व भी इसका उतना ही जिम्मेवार है। हिन्दू साम्प्रदायिक शक्तियों ने तो जिन्ना से भी पहले 1937 में ही दो राष्ट्र के सिद्धांत को मान्यता दी थी। सावरकर ने कहा कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग अलग राष्ट्र हैं और वे इकट्ठे नहीं रह सकते। 1938 में भाई परमानन्द ने कहा कि श्री जिन्ना का कहना है कि देश में दो राष्ट्र हैं और यदि जिन्ना सही हैं, और मैं मानता हूं कि वह हैं, तो एक राष्ट्र बनाने का काग्रेंस का सिद्धांत बेकार है। समस्या के दो समाधान हैं: एक, देश का दो हिस्सों में विभाजन, दूसरा देश के भीतर एक मुस्लिम देश को पनपने देना। इस तरह देश के विभाजन में सिर्फ मुस्लिम लीग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता । साम्प्रदायिकता और मिथ्या प्रचार / 101