पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/११०

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हैं । ये न तो कट्टर हिन्दू हैं, न कट्टर मुसलमान। राजपूताने और आगरा जिले के मलकाना राजपूत मुसलमान हैं, मगर, वे हिन्दू के समान रहते हैं, राम नाम जपते हैं और दरगाहों पर भी जाते हैं। गुजरात के खोजा सम्प्रदाय पर वैष्णव धर्म का बहुत प्रभाव पड़ा था। वल्लभाचार्यी वैष्णवों के समान, खोजा लोग भी अपने को गुरु का परम-दास मानते हैं एवं गुरु को वे साक्षात् कृष्ण का अवतार समझते '। इनके बहुत से रीति रिवाज हिन्दुओं के थे । किन्तु इधर वे भी कट्टरता की ओर लौट रहे हैं। बंगाल के बाऊल घरों में तो मुसलमानों की तरह रहते हैं, किन्तु, वे न तो कट्टर हिन्दू हैं, न कट्टर मुसलमान । हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य में जो वृद्धि मुगल काल में हुई, वह अब भी शेष है। आगरे के मलकाना राजपूत मियां ठाकुर कहलाना पसन्द करते हैं। क्षिति बाबू ने लिखा है कि अजमेर के पास कुछ ब्राह्मण हैं जो हुसैनी कहलाते हैं। कच्छ के मेमो लोग त्रिदेव को पूजते हैं एवं मामाशाह को ब्रह्म का अवतार मानते हैं। बिहार में भी कुछ ब्राह्मणों की पदवी खां है। उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसे भी मुसलमान हैं जो राजपूत मुसलमान, तेली मुसलमान और ब्राह्मण मुसलमान कहलाते हैं । बंगाल में हिन्दू मुस्लिम संस्कृतियों के बीच जो मिश्रण हुआ, उसका एक प्रमाण ‘सत्यपीर' की पूजा भी मानी जा सकती है। यह पूजा हुसैनशाह के समय प्रवर्तित की गई एवं सत्यनारायण की पूजा इसका मूल स्रोत थी । विशेषता यह हुई कि सत्यपीर का पूजन करने एवं उनका महात्म्य सुनने को हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही जातियों के लोग जमा होते थे। बंगाल में रमाई पंडित ने एक शून्य- पुराण भी लिखा (14वीं सदी) जिसमें कहा गया कि ब्राह्मणों से सतधर्मी जब बहुत पीड़ित होने लगे तब उनकी रक्षा के लिए धर्म ने भी मुसलमानी रूप धारण किया और सभी देवता पैजामा पहन पहन कर ब्राह्मणों को मारने आ गए। परिशिष्ट / 111