पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उन्होनें भी इन विद्याओं में अच्छी प्रगति की थी। जब मुसलमान भारत आए उनका यह सामासिक ज्ञान भारत को भी प्राप्त हुआ। ज्योतिष के कुछ पारिभाषिक शब्द, इस प्रकार, इस्लाम की देन हैं। इस देश में देशान्तर और अक्षांश रेखाएं गिनने की प्रणाली भी मुसलमानों से ली हुई है। वर्ष फल बनाने की ताजिक- पद्धति भी यहां मुसलमानों के आने के बाद चालू हुई । ज्योतिष की अरबी पद्धति के आने के बाद ही, महाराज जयसिंह ने हिन्दू पंचाग का सुधार किया और जयपुर, मथुरा, दिल्ली तथा काशी में वेधशालाएं बनवायीं । ज्योतिष पर विदेशी प्रभाव इसलिए पड़ा कि भारत में इस विद्या का व्यवसाय अत्यन्त प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। राजाओं और धनियों को बराबर ग्रह शान्ति करवाने अथवा अपना भविष्य जंचवाने की उत्सुकता रहती थी । और इस उत्सुकता का अनुकूल लाभ पंडितों को प्राप्त होता था। इसलिए, राजे जिस भाषा के प्रेमी हुए, वहां के ज्योतिषियों ने भी उस भाषा का थोड़ा-बहुत सहारा लिया। यूनानियों के आगमन के बाद भारतीय ज्योतिष में रमनशास्त्र लिखा गया जिसके नाम में ही रोमन या यूनानी शब्द मौजूद है। कहते हैं, होरा-चक्र की पद्धति भी यूनान से यहां आई थी। जब शासन मुसलमानों का हुआ, तब अरब का प्रभाव भारतीय ज्योतिष पर पड़ना स्वाभाविक हो गया। ताजिक-शास्त्र वर्ष - फल, माह- फल आदि बताने की अरबी पद्धति है । इस शास्त्र के बीस-पचीस ग्रन्थ अपने यहां लिखे गए। इसी प्रकार, अरबों के रमल फेंककर सगुन विचारने की जो प्रथा थी, वह भी भारत पहुंची और रमल - शास्त्र पर भी काफी पुस्तकें लिखी गईं। ताजिक शास्त्र की पुस्तकों में जो श्लोक मिलते हैं, उनमें अरबी और फारसी शब्दों का प्रयोग खुलकर किया गया है। स्यादिक्कबालः इशराफयोगः खल्लासरम् रद्दमुथोदपुफालिः कुत्थम् तदुत्थोथदिवीरनामा। यूनानी सम्पर्क के समय होरा, कौर्ण्य, जूक, लेय, हेलि आदि दर्जनों यूनानी शब्द थे जिनका रूप संस्कृतवत् हो गया था। मुस्लिम सम्पर्क से कितने ही अरबी और फारसी के शब्द संस्कृत में समा गए। एक श्लोक में तारीख शब्द का ऐसे प्रयोग है, मानो, वह पाणिनी का ही शब्द हो । , सिद्धों के समय से भारत में जो निराकारवादी सम्प्रदाय पनपते आ रहे थे, उनके बहुत से सदस्य तो मुसलमान हो गए और बहुत ऐसी जगहों पर रह गए जो हिन्दुत्व और इस्लाम, दोनों से नजदीक थीं। बंगाल के बाऊल ऐसे ही सम्प्रदायों के यादगार हैं। अजमेर में कुछ लोग अपने को हुसैनी ब्राह्मण कहते 110 / साम्प्रदायिकता