पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१४

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के सामने रख सकें। उनका काम केवल एक-दूसरे का विरोध करके सरकार के सामने फरियाद करना और इस तरह विदेशी शासन को स्थायी बनाना है। उन्हें किसी हिन्दू या किसी मुस्लिम शासन की अपेक्षा विदेशी शासन कहीं सहज है। वे ओहदों और रिआयतों के लिए एक-दूसरे से चढ़ा- ऊपरी करके जनता पर शासन करने में शासक के सहायक बनने के सिवा और कुछ नहीं करते । मुसलमान अगर शासकों का दामन पकड़कर कुछ रिआयतें पा गया है, तो हिंदू क्यों न सरकार का दामन पकड़े और क्यों न मुसलमान की ही भांति सुर्खरू बन जाए। यही उनकी मनोवृत्ति है । कोई ऐसा काम सोच निकालना, जिससे हिंदू और मुसलमान दोनों एक होकर राष्ट्र का उद्धार कर सकें, उनकी विचार शक्ति से बाहर है। दोनों ही साम्प्रदायिक संस्थाएं मध्यवर्ग के धनिकों, जमींदारों, ओहदेदारों और पद-लोलुपों की है। उनका कार्य क्षेत्र अपने समुदाय के लिए ऐसे अवसर प्राप्त करना है, जिससे वह जनता पर शासन कर सकें, जनता पर आर्थिक और व्यावसायिक प्रभुत्व जमा सकें । साधारण जनता के सुख-दुख से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं । अगर सरकार की किसी नीति से जनता को कुछ लाभ होने की आशा है और इन समुदायों को कुछ क्षति पहुँचने का भय है, तो वे तुरंत उसका विरोध करने को तैयार हो जाएंगी। अगर और ज्यादा गहराई तक जाएं, तो हमें इन संस्थाओं में अधिकांश ऐसे सज्जन मिलेंगे जिनका कोई-न-कोई निजी हित लगा हुआ है और कुछ न सही तो हुक्काम के बंगलों पर उनकी रसाई ही सरल हो जाती है। 8 स्वतन्त्रता के बाद भी साम्प्रदायिकता हमेशा उच्च वर्ग के हितों की सेवा करने का औजार रही है। समाज के सामान्य लोगों के दुख-दर्दों से साम्प्रदायिकता का कोई लेना-देना नहीं है। अपने ही सम्प्रदाय के बीच अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण, अंध-विश्वास, बेकारी, भ्रूण हत्या, स्त्री-विरोधी पुरातन मानसिकता, जाति की अमानवीय प्रथा के प्रति कभी आवाज नहीं उठाई जाती क्योंकि साम्प्रदायिक दृष्टि में ये समस्याएं ही नहीं हैं। साम्प्रदायिकता के लिए गरीबी समस्या नहीं है बल्कि गरीब समस्या हैं, उनकी मैनेजमेंट करना और उनके रोष को उन्हीं के हितों के खिलाफ प्रयोग करना उसकी चिंता है, और निहित स्वार्थ इस कुत्सित कार्य को सिद्ध करने के लिए साम्प्रदायिकता के विषैले नाग को अपने पिटारे से निकालते रहते हैं। संदर्भ 1. गांधी: एक पुनर्विचार; विपन चन्दा के लेख, गांधी जी, धर्म निरपेक्षता और साम्प्रदायिकता से; पृ. -69; सहमत, नई दिल्ली; 2004 2. सामाजिक क्रांति के दस्तावेज (भाग -1 ); शंभुनाथ (सं.), पृ. - 292; साम्प्रदायिकता / 15