पृष्ठ:साम्प्रदायिकता.pdf/१६

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धर्म और साम्प्रदायिकता आधुनिक भारत पर साम्प्रदायिकता की काली छाया लगातार मंडराती रही है। साम्प्रदायिकता के कारण भारत का विभाजन हुआ और अब तक साम्प्रदायिक हिंसा में हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं और लाखों के घर उजड़े हैं, लाखों लोग विस्थापित होकर शरणार्थी का जीवन जीने पर मजबूर हुए हैं। साम्प्रदायिकता से समाज को छुटकारा दिलाना हर संवेदनशील व देशभक्त व्यक्ति का कर्तव्य है। साम्प्रदायिकता के साथ धर्म जुड़ा रहता है, जिस कारण साम्प्रदायिकता की समस्या का समाधान चाहने वाले लोग कई बार इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि साम्प्रदायिकता की जड़ धर्म में है। साम्प्रदायिकता का धर्म से गहरा ताल्लुक होते हुए भी धर्म उसकी उत्पत्ति का कारण नहीं है। इसलिए धर्म और साम्प्रदायिकता के अन्त: सम्बन्धों को समझना निहायत जरूरी है। धर्म का क्षेत्र और साम्प्रदायिकता का क्षेत्र बिल्कुल भिन्न है। धर्म में ईश्वर का, परलोक का, स्वर्ग-नरक का, पुनर्जन्म का, आत्मा-परमात्मा का विचार होता है। सच्चे धार्मिक का और धर्म का सारा ध्यान पारलौकिक आध्यात्मिक जगत से संबंधित होता धर्म में भौतिक जगत की कोई जगह नहीं होती जबकि इसके विपरीत साम्प्रदायिकता का अध्यात्म से कुछ भी लेना-देना नहीं है और साम्प्रदायिक लोग अपने भौतिक स्वार्थों जैसे राजनीति, सत्ता, व्यापार आदि की चिन्ता अधिक करते हैं । किसी समाज में विभिन्न धर्मों के होने मात्र से ही साम्प्रदायिकता पैदा नहीं होती। साम्प्रदायिकता स्वतः स्फूर्त परिघटना नहीं होती बल्कि साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने के लिए साम्प्रदायिक शक्तियां वातावरण का निर्माण करती हैं, एक-दूसरे समुदाय के बारे भ्रम फैलाते हैं और एक-दूसरे के विरुद्ध नफ रत फैलाते हैं। भारत में बहुत से धर्मों के लोग रहते हैं, भिन्न-भिन्न धर्मों के होना साम्प्रदायिकता नहीं है। लोगों के, समुदायों के धार्मिक हित कभी नहीं टकराते इसलिए उनमें कोई हिंसा-तनाव होने का सवाल ही नहीं उठता। कुछ लोगों के सांसारिक हित (सत्ता-व्यापार) टकराते हैं तो वे अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए इस बात का धुंआधार प्रचार करते हैं कि एक धर्म के मानने वाले लोगों के हित समान हैं और भिन्न-भिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के हित परस्पर विपरीत एवं विरोधी हैं। बस यहीं से साम्प्रदायिकता की शुरूआत धर्म और साम्प्रदायिकता / 17